Sunday 21 January 2018

Harishankar Parsai


हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1922 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में 'जमानी' नामक गाँव में हुआ था। गाँव से प्राम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आये थे। 'नागपुर विश्वविद्यालय' से उन्होंने एम. ए. हिंदी की परीक्षा पास की। कुछ दिनों तक उन्होंने अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका 'वसुधा' का प्रकाशन भी किया, परन्तु घाटा होने के कारण इसे बंद करना पड़ा।परसाई मुख्यतः व्यंग -लेखक है, पर उनका व्यंग केवल मनोरजन के लिए नही है। उन्होंने अपने व्यंग के द्वारा बार-बार पाठको का ध्यान व्यक्ति और समाज की उन कमजोरियों और विसंगतियो की ओर आकृष्ट किया है जो हमारे जीवन को दूभर बना रही है। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं शोषण पर करारा व्यंग किया है जो हिन्दी व्यंग -साहित्य में अनूठा है। परसाई जी अपने लेखन को एक सामाजिक कर्म के रूप में परिभाषित करते है। उनकी मान्यता है कि सामाजिक अनुभव के बिना सच्चा और वास्तविक साहित्य लिखा ही नही जा सकता। परसाई जी मूलतः एक व्यंगकार है। सामाजिक विसंगतियो के प्रति गहरा सरोकार रखने वाला ही लेखक सच्चा व्यंगकार हो सकता है। परसाई जी सामायिक समय का रचनात्मक उपयोग करते है। उनका समूचा साहित्य वर्तमान से मुठभेड़ करता हुआ दिखाई देता है।

प्रमुख रचनाएं

कहानी–संग्रह

हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव।
   
उपन्यास

रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल।

संस्मरण

तिरछी रेखाएँ।
   
लेख संग्रह

तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेइमानी की परत, अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचन्द के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं।

सम्मान और पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार - 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए
शिक्षा सम्मान - मध्य प्रदेश शासन द्वारा
डी.लिट् की मानद उपाधि - 'जबलपुर विश्वविद्यालय' द्वारा
शरद जोशी सम्मान

निधन

अपनी हास्य व्यंग्य रचनाओं से सभी के मन को भा लेने वाले हरिशंकर परसाई का निधन 10 अगस्त, 1995 को जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ। परसाई जी मुख्यतः व्यंग लेखक थे, किंतु उनका व्यंग केवल मनोरंजन के लिए नहीं है। उन्होंने अपने व्यंग के द्वारा बार-बार पाठकों का ध्यान व्यक्ति और समाज की उन कमज़ोरियों और विसंगतियों की ओर आकृष्ट किया था, जो हमारे जीवन को दूभर बना रही हैं।

Share this

0 Comment to "Harishankar Parsai"

Post a Comment