Wednesday 24 January 2018

Sardar Vallabh Bhai Patel


सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नाडियाड ग्राम, गुजरात में हुआ था। उनके पिता जव्हेरभाई पटेल एक साधारण किसान और माता लाडबाई एक गृहिणी थी। बचपन से ही वे परिश्रमी थे, बचपन से ही खेती में अपने पिता की सहायता करते थे। वल्लभभाई पटेल ने पेटलाद की एन.के. हाई स्कूल से शिक्षा ली।1893 में 16 साल की आयु में ही उनका विवाह झावेरबा के साथ कर दिया गया था। उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया। स्कूल के दिनों से ही वे हुशार और विद्वान थे। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उनके पिता ने उन्हें 1896 में हाई-स्कूल परीक्षा पास करने के बाद कॉलेज भेजने का निर्णय लिया था लेकिन वल्लभभाई ने कॉलेज जाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद लगभग तीन साल तक वल्लभभाई घर पर ही थे और कठिन मेहनत करके बॅरिस्टर की उपाधी संपादन की और साथ ही में देशसेवा में कार्य करने लगे।
नवम्बर 1917 में पहली बार गाँधी जी से सीधे संपर्क में आये। 1918 में अहमदाबाद जिले में अकाल राहत का बहुत व्यवस्थित ढंग से प्रबंधन किया अहमदाबाद Municipal Board से गुजरात सभा को अच्छी धनराशी मंजूर करवाई जिससे इंफ्लुएंजा जैसी महामारी से निपटने के लिए एक अस्थाई हॉस्पिटल स्थापित किया। 1918 में ही सरकार द्वारा अकाल प्रभावित खेड़ा जिले में वसूले जा रहे लैंड रेवेन्यु के विरुद्ध “No-Tax” आन्दोलन का सफल नेतृत्व कर वसूली को माफ़ करवाया. गुजरात सभा को 1919 में गुजरात सूबे की काग्रेस कमिटी में परिवर्तित कर दिया जिसके सचिव पटेल तथा अध्यक्ष महात्मा गाँधी बने।
1920 के असहयोग आन्दोलन में सरदार पटेल ने स्वदेशी खादी, धोती, कुर्ता और चप्पल अपनाये तथा विदेशी कपड़ो की होली जलाई।
सरदार पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई बार जेल के अंदर-बाहर हुए, हालांकि जिस चीज के लिए इतिहासकार हमेशा सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में जानने के लिए इच्छुक रहते हैं, वह थी उनकी और जवाहरलाल नेहरू की प्रतिस्पर्द्धा। सब जानते हैं कि 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल ही गाँधी जी के बाद दूसरे सबसे प्रबल दावेदार थे, किन्तु मुस्लिमों के प्रति सरदार पटेल की हठधर्मिता की वजह से गाँधीजी ने उनसे उनका नाम वापस दिलवा दिया। 1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए भी पटेल एक प्रमुख उम्मीदवार थे, लेकिन इस बार भी गाँधीजी के नेहरू प्रेम ने उन्हें अध्यक्ष नहीं बनने दिया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल महात्मा गांधीजी के आंदोलनों से काफी प्रभावित थे और गांधीजी के नेतृत्व में आजादी की लडाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिये, गांधीजी का कोई भी आन्दोलन जैसे असहयोग आन्दोलन, दांडी यात्रा, भारत छोडो आन्दोलन रहा हो उसमे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे जिसके कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल अंग्रेजो के आखो की किरकिरी बन चुके थे सरदार वल्लभ भाई पटेल की सबसे बड़ी ताकत उनकी बुलंद आवाज थी जब ये बोलते सभी को एक सूत्र में बाध देते थे
पटेल के अनुसार आज़ाद भारत बिल्कुल नया और सुंदर होना चाहिए। अपने असंख्य योगदान की बदौलत ही देश की जनता ने उन्हें “आयरन मैन ऑफ़ इंडिया – लोह पुरुष” की उपाधि दी थी। इसके साथ ही उन्हें “भारतीय सिविल सर्वेंट के संरक्षक’ भी कहा जाता है। कहा जाता है की उन्होंने ही आधुनिक भारत के सर्विस-सिस्टम की स्थापना की थी।
जब महात्मा गाँधी को गोली मारकर हत्या कर दी गई तो सरदार वल्लभ भाई इस घटना से अत्यधिक छुब्ध हो चुके थे मन ही मन उन्हें बहुत गहरा आघात पंहुचा और फिर 15 दिसम्बर 1950 को मुम्बई में सरदार वल्लभ भाई पटेल को हार्ट अटैक आया और फिर सदा के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल इस दुनिया को छोडकर चले गये सरदार वल्लभभाई पटेल की मृत्यु के बाद भारत ने अपना नेता खो दिया। सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे दूसरे नेता को ढूंढना मुश्किल होगा, जिन्होंने आधुनिक भारत के इतिहास में इतनी सारी भूमिकाएं निभायीं।
सरदार पटेल ने राष्ट्रिय एकता का एक ऐसा स्वरुप दिखाया था जिसके बारे में उस समय में कोई सोच भी नही सकता था। उनके इन्ही कार्यो के कारण उनके जन्मदिन को राष्ट्रिय स्मृति दिवस को राष्ट्रिय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस दिन को भारत सरकार ने 2014 से मनाना शुरू किया था, हर साल 31 अक्टूबर को राष्ट्रिय एकता दिवस मनाया जाता है।

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