Sunday 2 July 2017

Malik Muhammad Jayasi



पूरा नाम - मलिक मुहम्मद जायसी
जन्म - सन - सन 1492 ई. या 1494 ई. के आसपास
जन्म भूमि - रायबरेली ज़िला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु - '5 रज्जब 949 हिजरी' (सन 1542 ई.)

जन्म

जायसी के जन्म के सम्बंध में मतभेद पाया जाता है। जायसी का जन्म सन 1492 ई. या 1494 ई. के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे। जायस नाम का एक नगर उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में आज भी वर्तमान है, जिसका एक पुराना नाम उद्याननगर 'उद्यानगर या उज्जालिक नगर' बतलाया जाता है तथा उसके कंचाना खुर्द नामक मुहल्ले में मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म-स्थान होना भी कहा जाता है। कुछ लोगों की धारणा कि जायसी की किसी उपलब्ध रचना के अंतर्गत उसकी निश्चित जन्म-तिथि अथवा जन्म-संवत का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं पाया जाता। उनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है और कहा जाता है कि वे मामूली ज़मींदार थे और खेती करते थे। स्वयं जायसी का भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है। जायसी ने अपनी कुछ रचनाओं में अपनी गुरु-परंपरा का भी उल्लेख किया है। उनका कहना है, सैयद अशरफ़, जो एक प्रिय संत थे मेरे लिए उज्ज्वल पंथ के प्रदर्शक बने और उन्होंने प्रेम का दीपक जलाकर मेरा हृदय निर्मल कर दिया।

शिक्षा

जायसी की शिक्षा भी विधिवत् नहीं हुई थी। जो कुछ भी इन्होनें शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की वह मुसलमान फ़कीरों, गोरखपन्थी और वेदान्ती साधु-सन्तों से ही प्राप्त की थी।

कृतियाँ

जायसी की 21 रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरानामा, चित्ररेखा आदि प्रमुख हैं पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है। इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है। 'पद्मावत' का रचनाकाल उन्होंने 147 हिजरी ('सन नौ से सैंतालीस अहै'- पद्मावत 24)। अर्थात 1540 ई॰ बतलाया है। 'पद्मावत' के अन्तिम अंश (653) के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि उसे लिखते समय तक वे वृद्ध हो चुके थे, "उनका शरीर क्षीण हो गया था, उनकी दृष्टि मन्द पड़ गयी थी, उनके दाँत जाते रहे थे उनके कानों में सुनने की शक्ति नहीं रह गयी थी, सिर झुक गया था, केश श्वेत हो चले थे तथा विचार करने तक की शक्ति क्षीण हो चली थी" किन्तु इसका कोई संकेत नहीं है कि इस समय वे कितने वर्ष की अवस्था तक पहुँच चुके थे।

मृत्यु

मुहम्मद जायसी के जन्म की तरह ही इनकी मृत्यु के भी मतभेद मिले है। सैयद आले मुहम्मद मेहर जायसी ने किसी क़ाज़ी सैयद हुसेन की अपनी नोटबुक में दी गयी जिस तारीख़ '5 रज्जब 949 हिजरी' (सन 1542 ई.) का मलिक मुहम्मद जायसी की मृत्यु तिथि के रूप में उल्लेख किया है । उसे भी तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता, जब तक उसका कहीं से समर्थन न हो जाए। कहा जाता है कि इनका देहांत अमेठी के आसपास के जंगलो में हुआ था। अमेठी के राजा ने इनकी समाधी बनवा दी, जो अभी भी है।

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