Saturday 15 July 2017

Keshav Das




पूरा नाम -  केशवदास
जन्म - सन - 1555 विक्रमी
पिता - काशीराम
जन्म भूमि - मध्यप्रदेश राज्य के ओरछा नगर
मृत्यु - 1618 विक्रमी

जन्म
 
केशवदास (जन्म  1555 विक्रमी) हिन्दी साहित्य के रीतिकाल की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय करानेवाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि हैं। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम काशीराम था जो ओड़छा नरेश मधुकरशाह के विशेष स्नेहभाजन थे। मधुकरशाह के पुत्र महाराज इन्द्रजीत सिंह इनके मुख्य आश्रयदाता थे। वे केशव को अपना गुरु मानते थे। रसिकप्रिया के अनुसार केशव ओड़छा राज्यातर्गत तुंगारराय के निकट बेतवा नदी के किनारे स्थित ओड़छा नगर में रहते थे।

बहुमुखी प्रतिभा के मालिक

केशव धर्म, ज्योतिष, संगीत, भुगोल, वैद्यक, वनस्पति, पुराण, राजनीति, अश्व-परीक्षा, कामशास्र आदि शास्रों के सामान्य ज्ञाता थे। इस बहुलता ने केशव के काव्य प्रस्तुतिकरण को मजीद समृद्ध किया। काव्यशास्र, नीतिशास्र और कामशास्र के वह विशेषज्ञ प्रतीत होते हैं। एक तरफ बहुज्ञाता ने केशव की काव्य साधना को प्रभावित किया वहीं दूसरी तरफ उनको राजसम्मान भी प्राप्त कराने का काम किया। केशव की कृतियों में अनेकों स्थानों पर उनकी बहुज्ञता को दर्शाया गया है। केशव को अपने पांडित्य पर गर्व था।

रचनाएं

केशवदास रचित प्रामाणिक ग्रंथ नौ हैं : रसिकप्रिया, कविप्रिया, नखशिख, छंदमाला, रामचंद्रिका, वीरसिंहदेव चरित, रतनबावनी, विज्ञानगीता और जहाँगीर जसचंद्रिका। रसिकप्रिया केशव की प्रौढ़ रचना है जो काव्यशास्त्र संबंधी ग्रंथ हैं। इसमें रस, वृत्ति और काव्यदोषों के लक्षण उदाहरण दिए गए हैं। इसके मुख्य आधारग्रंथ हैं - नाट्यशास्त्र, कामसूत्र और रुद्रभट्ट का श्रृंगारतिलक। कविप्रिया काव्यशिक्षा संबंधी ग्रंथ है जो इन्द्रजीतसिंह की रक्षिता और केशव की शिष्या प्रवीणराय के लिये प्रस्तुत किया गया था। यह कविकल्पलतावृत्ति और काव्यादर्श पर आधारित है। रामचंद्रिका उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध महाकाव्य है जिसकी रचना में प्रसन्नराघव, हनुमन्नाटक, कादंबरी आदि कई ग्रंथो से सामगी ग्रहण की गई हैं।

निधन

केशव के निधन के काल और स्थान पर विद्वानों में मतभेद पाये जाते हैं। मिश्रबन्धु, गणेशप्रसाद, रामनरेश त्रिपाठी एवं रामचन्द्र शुक्ल इत्यादि विद्वान केशवदास का निधन काल 1674 में हुआ मानते हैं। स्व० चन्द्रबली पाण्डेय ने निधन काल सं० 1670 माना है। लाला भगवानदीन और गोरीशंकर द्विवेदी के अनुसार केशव का निधन 1680 में हुआ था।

साहित्य में स्थान


केशव दासजी हिंदी साहित्य के प्रथम आचार्य हैं। हिंदी में सर्व प्रथम उन्होंने ही काव्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय पद्धति से विवेचन किया। यह ठीक है कि उनके काव्य में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष की प्रधानता है और पांडित्य प्रदर्शन के कारण उन्हें कठिन काव्य के प्रेत कह कर पुकारा जाता है किंतु उनका महत्व बिल्कुल समाप्त नहीं हो जाता। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में केशव की रचना में सुर, तुलसी आदि की सी सरलता और तन्मयता चाहे न हो पर काव्यांगों का विस्तृत परिचय करा कर उन्होंने आगे के लिए मार्ग खोला। केशवदास जी वस्तुतः एक श्रेष्ठ कवि थे। सूर और तुलसी के पश्चात हिंदी-काव्य-जगत में उन्हीं की ही गणना की जाती है-

    सूर सूर तुलसी ससी उडुगन केशवदास।
    अबके कवि खद्योत सम जह-तह करत प्रकाश।।

Share this

0 Comment to "Keshav Das"

Post a Comment