भवानी प्रसाद मिश्र
जन्म - 29 मार्च 1913
गाँव टिगरिया, जिला होशंगाबाद
मृत्यु - फ़रवरी 20, 1985 (उम्र 71)
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)
जन्म
गीतफ़रोश के नाम से प्रसिद्ध भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च 1913 को गांव टिगरिया, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में हुआ था।
शिक्षा
भवानी प्रसाद मिश्र की प्रारंभिक शिक्षा क्रमश: सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में हुई| उन्होंने हिन्दी, अंग्रेज़ी और संस्कृत विषय लेकर बी. ए. पास किया। भवानी प्रसाद मिश्र ने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर शिक्षा देने के विचार से एक स्कूल खोल लिया और उस स्कूल को चलाते हुए ही 1942 में गिरफ्तार होकर 1949 में छूटे। उसी वर्ष महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक की तरह चले गए और चार पाँच साल वर्धा में बिताए।
साहित्यिक जीवन
भवानी प्रसाद मिश्र का कविताएँ लिखने की शुरूआत लगभग 1930 से हो गयी थी और कुछ कविताएँ पंडित ईश्वरी प्रसाद वर्मा के सम्पादन में निकलने वाले 'हिन्दू पंच' में हाईस्कूल पास होने के पहले ही प्रकाशित हो चुकी थीं। सन 1932-33 में वे माखनलाल चतुर्वेदी के संपर्क में आए। श्री चतुर्वेदी आग्रहपूर्वक कर्मवीर में भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएँ प्रकाशित करते रहे। हंस में काफ़ी कविताएँ छपीं और फिर अज्ञेय जी ने दूसरे सप्तक में इन्हे प्रकाशित किया। दूसरे सप्तक के प्रकाशन के बाद प्रकाशन क्रम ज्यादा नियमित होता गया। उन्होंने चित्रपट (सिनेमा) के लिए संवाद लिखे और मद्रास के एबीएम में संवाद निर्देशन भी किया। मद्रास से मुम्बई आकाशवाणी के निर्माता बन गए और आकाशवाणी केन्द्र, दिल्ली पर भी काम किया।
शैली
भवानी प्रसाद मिश्र उन गिने चुने कवियों में थे जो कविता को ही अपना धर्म मानते थे और आम जनों की बात उनकी भाषा में ही रखते थे।उनकी बहुत सारी कविताओं को पढ़ते हुए महसूस होता है कि कवि आपसे बोल रहा है, बतिया रहा है। जहाँ अपनी गीतफरोश कविता में कवि ने अपने फ़िल्मी दुनिया में बिताये समय को याद कर कवि के गीतों का विक्रेता बन जाने की विडम्बना को मार्मिकता के साथ कविता में ढाला है वहीं सतपुड़ा के घने जंगल जैसी कविता सुधी पाठकों को एक अछूती प्रकृति की सुन्दर दुनिया में लेकर चलती है।.उनकी कविताएँ गेय हैं और पाठकों को ताउम्र स्मरण रहती हैं।
कृतियाँ
कविता संग्रह- गीत फरोश, चकित है दुख, गान्धी पंचशती, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल सन्ध्या, व्यक्तिगत, परिवर्तन जिए, तुम आते हो, इदम् न मम्, शरीर कविता: फसलें और फूल, मानसरोवर दिन, सम्प्रति, अँधेरी कविताएँ, तूस की आग, कालजयी, अनाम और नीली रेखा तक।
बाल कविताएँ
तुकों के खेल,
संस्मरण
जिन्होंने मुझे रचा
निबन्ध संग्रह
कुछ नीति कुछ राजनीति।
निधन
20 फरवरी सन् 1985 को हिन्दी काव्य-जगत् का यह अनमोल सितारा अपनी कविताओं की थाती यहाँ छोड़ हमेशा के लिए हमसे बिछड़ गया।
जन्म - 29 मार्च 1913
गाँव टिगरिया, जिला होशंगाबाद
मृत्यु - फ़रवरी 20, 1985 (उम्र 71)
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)
जन्म
गीतफ़रोश के नाम से प्रसिद्ध भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च 1913 को गांव टिगरिया, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में हुआ था।
शिक्षा
भवानी प्रसाद मिश्र की प्रारंभिक शिक्षा क्रमश: सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में हुई| उन्होंने हिन्दी, अंग्रेज़ी और संस्कृत विषय लेकर बी. ए. पास किया। भवानी प्रसाद मिश्र ने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर शिक्षा देने के विचार से एक स्कूल खोल लिया और उस स्कूल को चलाते हुए ही 1942 में गिरफ्तार होकर 1949 में छूटे। उसी वर्ष महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक की तरह चले गए और चार पाँच साल वर्धा में बिताए।
साहित्यिक जीवन
भवानी प्रसाद मिश्र का कविताएँ लिखने की शुरूआत लगभग 1930 से हो गयी थी और कुछ कविताएँ पंडित ईश्वरी प्रसाद वर्मा के सम्पादन में निकलने वाले 'हिन्दू पंच' में हाईस्कूल पास होने के पहले ही प्रकाशित हो चुकी थीं। सन 1932-33 में वे माखनलाल चतुर्वेदी के संपर्क में आए। श्री चतुर्वेदी आग्रहपूर्वक कर्मवीर में भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएँ प्रकाशित करते रहे। हंस में काफ़ी कविताएँ छपीं और फिर अज्ञेय जी ने दूसरे सप्तक में इन्हे प्रकाशित किया। दूसरे सप्तक के प्रकाशन के बाद प्रकाशन क्रम ज्यादा नियमित होता गया। उन्होंने चित्रपट (सिनेमा) के लिए संवाद लिखे और मद्रास के एबीएम में संवाद निर्देशन भी किया। मद्रास से मुम्बई आकाशवाणी के निर्माता बन गए और आकाशवाणी केन्द्र, दिल्ली पर भी काम किया।
शैली
भवानी प्रसाद मिश्र उन गिने चुने कवियों में थे जो कविता को ही अपना धर्म मानते थे और आम जनों की बात उनकी भाषा में ही रखते थे।उनकी बहुत सारी कविताओं को पढ़ते हुए महसूस होता है कि कवि आपसे बोल रहा है, बतिया रहा है। जहाँ अपनी गीतफरोश कविता में कवि ने अपने फ़िल्मी दुनिया में बिताये समय को याद कर कवि के गीतों का विक्रेता बन जाने की विडम्बना को मार्मिकता के साथ कविता में ढाला है वहीं सतपुड़ा के घने जंगल जैसी कविता सुधी पाठकों को एक अछूती प्रकृति की सुन्दर दुनिया में लेकर चलती है।.उनकी कविताएँ गेय हैं और पाठकों को ताउम्र स्मरण रहती हैं।
कृतियाँ
कविता संग्रह- गीत फरोश, चकित है दुख, गान्धी पंचशती, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल सन्ध्या, व्यक्तिगत, परिवर्तन जिए, तुम आते हो, इदम् न मम्, शरीर कविता: फसलें और फूल, मानसरोवर दिन, सम्प्रति, अँधेरी कविताएँ, तूस की आग, कालजयी, अनाम और नीली रेखा तक।
बाल कविताएँ
तुकों के खेल,
संस्मरण
जिन्होंने मुझे रचा
निबन्ध संग्रह
कुछ नीति कुछ राजनीति।
निधन
20 फरवरी सन् 1985 को हिन्दी काव्य-जगत् का यह अनमोल सितारा अपनी कविताओं की थाती यहाँ छोड़ हमेशा के लिए हमसे बिछड़ गया।
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