Friday, 1 December 2017

Mahadevi Verma


महादेवी स्वरूप नारायण वर्मा
जन्म - 26 मार्च 1907
जन्मस्थान - फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
पिता - श्री गोविंद प्रसाद वर्मा
माता - हेमरानी देवी
निधन - 11 सितंबर, 1987

जन्म

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च सन् 1907 को (भारतीय संवत के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा संवत 1964 को) फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश के एक संपन्न परिवार में हुआ। इस परिवार में लगभग 200 वर्षों के बाद महादेवी जी के रूप में पुत्री का जन्म हुआ था। अत: इनके बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी- महादेवी माना और उन्होंने इनका नाम महादेवी रखा था। महादेवी जी के माता-पिता का नाम हेमरानी देवी और बाबू गोविन्द प्रसाद वर्मा था। श्रीमती महादेवी वर्मा की छोटी बहन और दो छोटे भाई थे। क्रमश: श्यामा देवी (श्रीमती श्यामा देवी सक्सेना धर्मपत्नी- डॉ॰ बाबूराम सक्सेना, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष एवं उपकुलपति इलाहाबाद विश्व विद्यालय) श्री जगमोहन वर्मा एवं श्री मनमोहन वर्मा। महादेवी वर्मा एवं जगमोहन वर्मा शान्ति एवं गम्भीर स्वभाव के तथा श्यामादेवी व मनमोहन वर्मा चंचल, शरारती एवं हठी स्वभाव के थे।

शिक्षा

महादेवी की शिक्षा 1912 में इंदौर के मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। 1916 में विवाह के कारण कुछ दिन शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने 1919 में बाई का बाग स्थित क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। महादेवी जी की प्रतिभा का निखार यहीं से प्रारम्भ होता है।

1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया और कविता यात्रा के विकास की शुरुआत भी इसी समय और यहीं से हुई। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और 1925 तक जब आपने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी, एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था। पाठशाला में हिंदी अध्यापक से प्रभावित होकर ब्रजभाषा में समस्यापूर्ति भी करने लगीं। फिर तत्कालीन खड़ीबोली की कविता से प्रभावित होकर खड़ीबोली में रोला और हरिगीतिका छंदों में काव्य लिखना प्रारंभ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर सौ छंदों में एक खंडकाव्य भी लिख डाला। कुछ दिनों बाद उनकी रचनाएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं। महादेवी ने अपना उच्च शिक्षण अल्लाहाबाद यूनिवर्सिटी से B.A की परीक्षा 1929 में पूरी कर उनकी मास्टर डिग्री 1933 M.A संस्कृत में की।
 
कार्य

महादेवीजी को छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है, वो एक विख्यात चित्रकार भी थी। उन्होंने अपनी कविताओ के लिए कई सारे दृष्टांत बनाये जैसे हिंदी और यमा. उनके अन्य काम लघु कथा जैसे “गिल्लू”, जो उनके गिलहरी के साथ वाले अनुभवों के बारे में कहता है और “नीलकंठ” जो उनके मोर के साथ वाले अनुभव को दर्शाता है,उन्होंने “गौरा” भी लिखी, जो उनके सच्चे जीवन पर आधारित है, इस कहानी में उन्होंने एक सुन्दर गाय के बारे में लिखा है।

वैवाहिक जीवन

नवाँ वर्ष पूरा होते होते सन् 1916 में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। महादेवी जी का विवाह उस उम्र में हुआ जब वे विवाह का मतलब भी नहीं समझती थीं। उन्हीं के अनुसार- "दादा ने पुण्य लाभ से विवाह रच दिया, पिता जी विरोध नहीं कर सके।

कविताये

उनकी कई सारी कविताओ का प्रकाशन अलग-अलग शीर्षक के साथ किया गया, लेकिन वे सारी कविताये उनकी निचे दी हुई रचनाओ से ही ली गयी है. जिनमे शामिल है-
नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), संध्यागीत (1936), दीपशिखा (1939), अग्निरेखा (1990, उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित)
 
कहानियाँ

अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाये, श्रंखला की कडिया, घीसा

पुरस्कार

महादेवी वर्मा के रचनात्मक गन और तेज़ बुद्धि ने जल्द ही उन्हें हिंदी भाषा की दुनिया में एक उच्च पद पर पहुचाया। 1934 में, उनके द्वारा रचित “नीरजा” के लिए हिंदी साहित्य सम्मलेन ने उन्हें सेकसरिया पुरस्कार से सम्मानित किया। उनकी कविताओ का संग्रह (यमा, 1936) को जनिपथ पुरस्कार मिला, जो साहित्य क्र क्षेत्र में भारत का सर्वोच्च सम्मान है।
उन्हें अल्लाहाबाद यूनिवर्सिटी के भूतपूर्व छात्र एसोसिएशन, एनसीआर, गाज़ियाबाद की ओर से “गरिमा प्राप्त अतीत के व्यक्ति” की 42 सदस्यों की सूचि में शामिल किया गया।
भारत सरकार ने उन्हें पदम् भूषण प्रदान किया, वो पहली महिला है जिन्हें 1979 में साहित्य अकादमी अनुदान का पुरस्कार दिया गया। 1988 में, भारत सरकार ने उन्हें पदम् विभूषण प्रदान किया, जो भारत सरकार का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
निधन

11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में इनका निधन हो गया।

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