Thursday 18 January 2018

Basappa Danappa Jatti


बासप्पा दानप्पा जत्ती
जन्म - 10 सितम्बर 1912
मृत्यु - 7 जून 2002

जन्म

बासप्पा दानप्पा जत्ती का जन्म 10 सितम्बर 1912 को बीजापुर ज़िले के सवालगी ग्राम में हुआ था। बीजापुर ज़िला, कर्नाटक का विभाजित भाग भी बना। जब इनका जन्म हुआ, तो गाँव में मूलभूत सुविधाओं का सर्वथा अभाव था। इनका ग्राम मुंबई प्रेसिडेंसी की सीमा के निकट था। इस कारण वहाँ की भाषा मराठी थी, कन्नड़ भाषा नहीं। श्री बासप्पा के दादाजी ने सवालगी ग्राम में एक छोटा घर तथा ज़मीन का एक टुकड़ा ख़रीद लिया था। लेकिन आर्थिक परेशानी के कारण घर और ज़मीन को गिरवी रखना पड़ा ताकि परिवार का जीवन निर्वाह किया जा सके।

विद्यार्थी जीवन

उस समय सवालगी ग्राम में दो स्कूल थे, जो प्राथमिक स्तर के थे। एक, लड़कों का स्कूल और दूसरा, लड़कियों का स्कूल। बासप्पा बचपन में काफ़ी शरारती थे। वह शरारत करने का मौक़ा तलाश करते थे। बासप्पा अपनी बड़ी बहन के बालिका स्कूल में पढ़ने जाते और वह इनकी सुरक्षा करती थीं। दूसरी कक्षा के बाद इन्हें लड़कों के स्कूल में दाखिला प्राप्त हो गया। चौथी कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें ए. वी. स्कूल में भर्ती कराया गया, जो उसी वर्ष खुला था। यह स्कूल काफ़ी अच्छा था। ए. वी. स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद बासप्पा सिद्धेश्वर हाई स्कूल बीजापुर गए ताकि मैट्रिक स्तर की परीक्षा दे सकें। 1929 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास कर ली। तब यह स्कूल के छात्रावास में ही रहा करते थे। वह खेलकूद में भी रुचि रखते थे। इन्हें फुटबॉल एवं तैराकी के अलावा कुछ भारतीय परम्परागत खेलों में भी रुचि थी। खो-खो, मलखम्भ, कुश्ती, सिंगल, बार एवं डबल बार पर कसरत करने का भी इन्हें शौक़ थ। उन्होंने लगातार दो वर्ष तक लाइट वेट वाली कुश्ती चैम्पियनशिप भी जीती थी।

राजनीतिक जीवन

1952 के भारत छोड़ो आन्दोलन में बासप्पा ने प्रजा परिषद पार्टी की ओर से प्रतिनिधित्व किया। जमाखंडी की प्रजा परिषद पार्टी में इन्हें सेक्रेटरी का पद प्रदान किया गया। इन दिनों बासप्पा को यह पसंद नहीं था कि इन्हें काँग्रेसी कहकर सम्बोधित किया जाए। 18 अप्रॅल 1945 को वह जमाखंडी स्टेट के मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। 25 अगस्त 1947 को यह प्रजा परिषद पार्टी की ओर से जमाखंडी स्टेट के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। लेकिन जब राज्यों के पुनर्गठन का समय आया तो जमाखंडी स्टेट स्वतंत्र भारत का एक अभिन्न हिस्सा बन गया। 1952 में भारतीय गणराज्य का प्रथम आम चुनाव हुआ। इसमें बासप्पा ने काँग्रेस के टिकट पर जमाखंडी सीट से विधायक का चुनाव लड़ा और शानदा अंतर के साथ जीत अर्जित की। मुंबई राज्य में पहली जन चयनित लोकप्रिय सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रथम मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। बासप्पा को उपमंत्री का दर्जा प्राप्त हुआ। यह शांतिलाल शाह के साथ कार्य करने लगे, जिनके पास स्वास्थ्य और श्रम के महकमे थे। शांतिलाल शाह ने बासप्पा जत्ती को कार्य हेतु पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की। इन्हें लगता था कि यह स्वयं कैबिनेट मिनिस्टर हैं। 1 नवम्बर 1956 को मुंबई प्रोविंस में जो हिस्सा कन्नड़ भाषी प्रदेश था, उसे अलग करके मैसूर में मिला दिया गया। इस प्रकार बासप्पा जमाखंडी की जिस सीट से विधायक निर्वाचित हुए थे, वह सीट मैसूर विधानसभा के अंतर्गत आ गई। 10 मई 1957 को इन्हें मैसूर राज्य की भूमि सुधार समिति का चेयरमैन बना दिया गया। उन्होंने यहाँ अवैतनिक रूप से पूर्ण निष्ठा के साथ कार्य किया। 27 अगस्त 1974 को बासप्पा उपराष्ट्रपति पद का चुनाव काफ़ी अंतर के साथ जीत गए। इन्हें 78.7 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। इनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी श्री एन. ई. होरो को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा, जो विपक्ष की कई पार्टियों के संयुक्त उम्मीदवार थे। 31 अगस्त 1974 को इन्हें राष्ट्रपति फ़खरुद्दीन अली अहमद ने उपराष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण कराई,11 फ़रवरी 1977 को फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की मृत्यु राष्ट्रपति पद पर रहते हुए हो गई। एक ओर जहाँ दिवंगत राष्ट्रपति के अंतिम संस्कार की रूपरेखा तैयार की जा रही थी, वहीं दूसरी ओर संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार उपराष्ट्रपति बी.डी जत्ती को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए जाने की औपचारिकताएँ भी पूर्ण की जा रही थीं। पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के दो घंटे बाद बी. डी. जत्ती को प्रातः 10.35 बजे कार्यवाहक राष्ट्रपति की शपथ ग्रहण कराई गई। सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश एम.एच. बेग ने बासप्पा दानप्पा जत्ती को कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्रपति भवन के अशोक हॉल में साधारण समारोह के दौरान शपथ ग्रहण कराई। बासप्पा ने यह पदभार 24 जुलाई 1977 तक संभाला। इस दौरान इन्होंने छठवीं लोकसभा के नए सत्र का शुभारंभ होने पर सदन को सम्बोधित भी किया। इसके बाद नीलम संजीव रेड्डी देश के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।

मृत्यु

7 जून 2002 को बी.डी जत्ती का निधन हो गया। जीवन के अंतिम समय में वे बंगलौर में थे। इस प्रकार एक परम्परावादी युग का अंत हो गया, जिससे गाँधी दर्शन भी समाहित था। उन्हें गांधीवादी विचारों के लिए आज भी याद किया जाता है। भले ही वे देश के निर्वाचित राष्ट्रपति नहीं रहे हो लेकिन कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में अपने छोटे से कार्यकाल में उन्होंने संवैधानिक जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।

Share this

0 Comment to "Basappa Danappa Jatti"

Post a Comment