Sunday, 21 January 2018

Kanhaiyalal Mishra


कन्हैयालाल मिश्र का जन्म 29 मई, 1906 ई. में सहारनपुर ज़िले के देवबन्द ग्राम में हुआ था। कन्हैयालाल का मुख्य कार्यक्षेत्र पत्रकारिता था। प्रारम्भ से भी राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यों में गहरी दिलचस्पी लेने के कारण कन्हैयालाल को अनेक बार जेल- यात्रा करनी पड़ी। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कन्हैयालाल ने बराबर कार्य किया है।हिंदी साहित्य और हिंदी पत्रकारिता के माथे पर सांस लेते चंदन शब्दों का तिलक लगाने वाले पद्मश्री कन्हैया लाल मिश्र ’प्रभाकर’ के पास जरूर किसी तांत्रिक-जोगी का दिया हुआ सिद्ध नमक था। तभी तो साधारण बोल-चाल के शब्दों में उस अद्भुत नमक से वे ऐसा स्वाद पैदा कर देते कि पाठक की आंखें और मन कुंभ में गंगास्नान के बाद गंगाघाट पर बैठ प्रसाद ग्रहण करने का सुख पाते।लेखन ’प्रभाकर’ जी के लिये लोक रंजन का माध्यम नहीं था। वे तो लिखते ही थे - नागरिकता के गुणों का विकास करने के लिये ! वे कहते थे - "हमारा काम यह नहीं कि हम विशाल देश में बसे चंद दिमागी अय्याशों का फालतू समय चैन और खुमारी में बिताने के लिये मनोरंजक साहित्य का मयखाना हर समय खुला रखें। हमारा काम तो यह है कि इस विशाल और महान देश के कोने-कोने में फैले जन साधारण के मन में विश्रंखलित वर्तमान के प्रति विद्रोह और भव्य भविष्य के निर्माण की श्रमशील भूख जगायें।प्रभाकर जी जिन आदर्शों का शंख फूंक रहे थे, वे आदर्श स्वयं उन्होंने अपने जीवन में अपनाये थे। युवावस्था में पढ़ाई छोड़, आजादी की लड़ाई में और सुधार आंदोलनों में खुद को समर्पित कर दिया। जेल यात्राएं और विदेशी शासन के हाथों यातनाएं सहीं। उनकी पुस्तक "तपती पगडंडियों पर पदयात्रा" इस सबका लेखा-जोखा है।उनकी कलम की नोक पर आकर शब्दों को जो श्रृंगार मिलता, उससे शब्दों का कायाकल्प हो जाता।आदर्शों का साहित्य रचने वाले प्रभाकर जी ईमानदार लेखक थे। उन्होंने स्पष्ट कहा है - "अपने साहित्य में मैं सबका मित्र हूं पर पत्रकारिता में मैं किसी का मित्र नहीं हुआ - हां, शत्रु भी नहीं ! उनकी पत्रकारिता न दलों में उलझी, न व्यक्तियों में। जो समाज के लिये उपयोगी, उसकी सराहना और जो हानिकारक, उसकी आलोचना। उन्होंने अपनी पत्रकारिता को राजनीति का चारण, समर्थक या विरोधी नहीं बनाया अपितु "राजनीति को सलाह-मशविरा और नेतृत्व" देने वाली बनाया।


रचनाएँ

प्रभाकर की अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें
    'नयी पीढ़ी, नये विचार' (1950)
    'ज़िन्दगी मुस्कारायी' (1954)
    'माटी हो गयी सोना' (1957), कन्हैयालाल के रेखाचित्रों के संग्रह है।
    'आकाश के तारे- धरती के फूल' (1952) प्रभाकर जी की लघु कहानियों के संग्रह का शीर्षक है।
    'दीप जले, शंख बजे' (1958) में, जीवन में छोटे पर अपने- आप में बड़े व्यक्तियों के संस्मरणात्मक रेखाचित्रों का संग्रह है।
    'ज़िन्दगी मुस्करायी' (1954) तथा
    'बाजे पायलिया के घुँघरू' (1958) नामक संग्रहों में आपके कतिपय छोटे प्रेरणादायी ललित निबन्ध संग्रहीत हैं।

निधन

कन्हैयालाल मिश्र का निधन 9 मई 1995 को हुआ।

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