रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसम्बर, 1899 ई. में बेनीपुर नामक गाँव, मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला, बिहार में हुआ था। उसी के आधार पर उन्होंने अपना उपनाम 'बेनीपुरी' रखा था। इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव की पाठशाला में ही पाई थी। बाद में वे आगे की शिक्षा के लिए मुज़फ़्फ़रपुर के कॉलेज में भर्ती हो गए। मैट्रिक पास करने के बाद वे असहयोग आंदोलन में शामिल हो गये।
साहित्यकारों के प्रति सम्मान
रामवृक्ष बेनीपुरी की अनेक रचनाएँ, जो यश कलगी के समान हैं, उनमें 'जय प्रकाश', 'नेत्रदान', 'सीता की माँ', 'विजेता', 'मील के पत्थर', 'गेहूँ और गुलाब' आदि शामिल है। 'शेक्सपीयर के गाँव में' और 'नींव की ईंट', इन लेखों में भी रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने देश प्रेम, साहित्य प्रेम, त्याग की महत्ता और साहित्यकारों के प्रति जो सम्मान भाव दर्शाया है, वह अविस्मरणीय है। इंग्लैण्ड में शेक्सपियर के प्रति जो आदर भाव उन्हें देखने को मिला, वह उन्हें सुखद भी लगा और दु:खद भी। शेक्सपियर के गाँव के मकान को कितनी संभाल, रक्षण-सजावट के साथ संभाला गया है। उनकी कृतियों की मूर्तियाँ बनाकर वहाँ रखी गई हैं, यह सब देख कर वे प्रसन्न हुए थे। पर दु:खी इस बात से हुए कि हमारे देश में सरकार भूषण, बिहारी, सूरदास और जायसी आदि महान साहित्यकारों के जन्म स्थल की सुरक्षा या उन्हें स्मारक का रूप देने का भी प्रयास नहीं करती। उनके मन में अपने प्राचीन महान साहित्यकारों के प्रति अति गहन आदर भाव था। इसी प्रकार 'नींव की ईंट' में भाव था कि जो लोग इमारत बनाने में तन-मन कुर्बान करते हैं, वे अंधकार में विलीन हो जाते हैं। बाहर रहने वाले गुम्बद बनते हैं और स्वर्ण पत्र से सजाये जाते हैं। चोटी पर चढ़ने वाली ईंट कभी नींव की ईंट को याद नहीं करती।
बेनीपुरी जी की रचनाएँ
रामवृक्ष बेनीपुरी की आत्मा में राष्ट्रीय भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी, जिसके कारण आजीवन वह चैन की साँस न ले सके। उनके फुटकर लेखों से और उनके साथियों के संस्मरणों से ज्ञात होता है कि जीवन के प्रारंभ काल से ही क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण बार-बार उन्हें कारावास भोगना पड़ता। सन 1942 में "अगस्त क्रांति आंदोलन" के कारण उन्हें हज़ारीबाग़ जेल में रहना पड़ा था। जेलवास में भी वह शान्त नहीं बैठे सकते थे। वे वहाँ जेल में भी आग भड़काने वाली रचनायें लिखते। जब भी वे जेल से बाहर आते, उनके हाथ में दो-चार ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ अवश्य होती थीं, जो आज साहित्य की अमूल्य निधि बन गई हैं। उनकी अधिकतर रचनाएँ जेल प्रवास के दौरान लिखी गईं।
उपन्यास
पतितों के देश में, आम्रपाली
कहानी संग्रह
माटी की मूरतें
निबंध
चिता के फूल, लाल तारा, कैदी की पत्नी, गेहूँ और गुलाब, जंजीरें और दीवारें
नाटक
सीता का मन, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, शकुंतला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँवों के देवता, नया समाज, विजेता, बैजू मामा
संपादन
विद्यापति की पदावली
सम्मान
वर्ष 1999 में 'भारतीय डाक सेवा' द्वारा रामवृक्ष बेनीपुरी के सम्मान में भारत का भाषायी सौहार्द मनाने हेतु भारतीय संघ के हिन्दी को राष्ट्रभाषा अपनाने की अर्धशती वर्ष में डाक-टिकटों का एक संग्रह जारी किया। उनके सम्मान में बिहार सरकार द्वारा 'वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार' दिया जाता है।
निधन
रामवृक्ष बेनीपुरी जी का निधन 9 सितम्बर, 1968 को मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार में हुआ।
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