Friday 28 April 2017

Morarji Desai


पूरा नाम - मोरारजी देसाई
जन्म - 29 फरवरी 1896
जन्म भूमि - भदेली, ब्रिटिश प्रेसीडेंसी
मृत्यु -10 अप्रैल 1995
पिता -  रणछोड़जी देसाई

जन्म


मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को गुजरात के भदेली नामक स्थान पर हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर (सौराष्ट्र) में एक स्कूल अध्यापक थे। वह अवसाद (निराशा एवं खिन्नता) से ग्रस्त रहते थे, अत: उन्होंने कुएं में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पिता की मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी देसाई की शादी हुई थी।

शिक्षा

मोरारजी देसाई की शिक्षा-दीक्षा मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में हुई जो उस समय काफ़ी महंगा और खर्चीला माना जाता था। मुंबई में मोरारजी देसाई नि:शुल्क आवास गृह में रहे जो गोकुलदास तेजपाल के नाम से प्रसिद्ध था। विद्यार्थी जीवन में मोरारजी देसाई औसत बुद्धि के विवेकशील छात्र थे। इन्हें कॉलेज की वाद-विवाद टीम का सचिव भी बनाया गया था लेकिन स्वयं मोरारजी ने मुश्किल से ही किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया होगा। मोरारजी देसाई ने अपने कॉलेज जीवन में ही महात्मा गाँधी, बाल गंगाधर तिलक और अन्य कांग्रेसी नेताओं के संभाषणों को सुना था। ग्रेजुएट होने के बाद वे गुजरात के सिविल सर्विस में शामिल हो गये. मई 1930 में गोदरा के डिप्टी कलेक्टर के पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

राजनीतिक जीवन

सरकारी नौकरी छोड़ने का बाद मोरारजी देसाई स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े। इसके बाद उन्होंने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरूद्ध ‘सविनय अवज्ञा’ आन्दोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान मोरारजी कई बार जेल गए। सन 1931 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव बने और फिर अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित कर उसके अध्यक्ष बन गए। अपने नेतृत्व कौशल से वह स्वतंत्रता सेनानियों के चहेते और गुजरात कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता बन गए। सन 1934 और 1937 के प्रांतीय चुनाव के बाद उन्हें बॉम्बे प्रेसीडेंसी का राजस्व और गृह मंत्रालय सौंपा गया।1952 में इन्हें बंबई प्रान्त का मुख्यमंत्री बनाया गया। गुजरात तथा महाराष्ट्र दोनों बंबई प्रोविंस के अंतर्गत आते थे। इसी दौरान भाषाई आधार पर दो अलग राज्य – माहाराष्ट्र (मराठी भाषी क्षेत्र) और गुजरात (गुजरात भाषी क्षेत्र) – बनाने की मांग बढ़ने लगी पर मोरारजी इस तरह के विभाजन के लिए तैयार नहीं थे। सन 1960 में मोरारजी ने ‘संयुक्त महाराष्ट्र समिति’ के प्रदर्शनकारियों पर गोली चलने आ आदेश इया जिसमे लगभग 105 लोग मारे गए। इस घटना के बाद मोरारजी को बॉम्बे के मुख्य मंत्री पद से हटाकर केंद्र में बुला लिया गया।केंद्र सरकार में मोरारजी को गृह मंत्री बनाया गया। गृह मंत्री के तौर पर उन्होंने फिल्मों और नाटकों के मंचन में अभद्रता प्रतिबंधित कर दिया था। वह नेहरु के समाजवाद का विरोध करते थे।

एक प्रधानमंत्री के रूप

पण्डित जवाहर लाल नेहरू के समय कांग्रेस में जो अनुशासन था, वह उनकी मृत्यु के बाद बिखरने लगा। कई सदस्य स्वयं को पार्टी से बड़ा समझते थे। मोरारजी देसाई भी उनमें से एक थे। श्री लालबहादुर शास्त्री ने कांग्रेस पार्टी के वफ़ादार सिपाही की भाँति कार्य किया था। उन्होंने पार्टी से कभी भी किसी पद की मांग नहीं की थी। लेकिन इस मामले में मोरारजी देसाई अपवाद में रहे। कांग्रेस संगठन के साथ उनके मतभेद जगज़ाहिर थे और देश का प्रधानमंत्री बनना इनकी प्राथमिकताओं में शामिल था। इंदिरा गांधी ने जब यह समझ लिया कि मोरारजी देसाई उनके लिए कठिनाइयाँ पैदा कर रहे हैं तो उन्होंने मोरारजी के पर कतरना आरम्भ कर दिया। इस कारण उनका क्षुब्ध होना स्वाभाविक था। नवम्बर 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन कांग्रेस-आर और कांग्रेस-ओ के रूप में हुआ तो मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी की कांग्रेस-आई के बजाए सिंडीकेट के कांग्रेस-ओ में चले गए। फिर 1975 में वह जनता पार्टी में शामिल हो गए। मार्च 1977 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया।इसके बाद 23 मार्च 1977 को 81 वर्ष की अवस्था में मोरारजी देसाई ने भारतीय प्रधानमंत्री का दायित्व ग्रहण किया। प्रधानमंत्री के रूप में श्री देसाई चाहते थे कि भारत के लोगों को इस हद तक निडर बनाया जाए कि देश में कोई भी व्यक्ति, चाहे वो सर्वोच्च पद पर ही आसीन क्यों न हो, अगर कुछ गलत करता है तो कोई भी उसे उसकी गलती बता सके। उन्होंने बार-बार यह कहा, “कोई भी, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री भी देश के कानून से ऊपर नहीं होना चाहिए”। उनके लिए सच्चाई एक अवसर नहीं बल्कि विश्वास का एक अंग था। उन्होंने शायद ही कभी अपने सिद्धांतों को स्थिति की बाध्यताओं के आगे दबने दिया। मुश्किल परिस्थितियों में भी वे प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ते गए। वह स्वयं यह मानते थे – ‘सभी को सच्चाई और विश्वास के अनुसार ही जीवन में कर्म करना चाहिए’।

मृत्यु

 
मोरारजी देसाई का देहांत 99 वर्ष की आयु में 10 अप्रैल 1995 में हुआ।

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