Saturday 29 April 2017

Chaudhary Charan Singh


नाम - चौधरी चरण सिंह
जन्म तिथि - 23 दिसम्बर, 1902.
जन्म स्थान - नूरपुर ग्राम, मेरठ, उत्तर प्रदेश.
मृत्यु - 29 मई, 1987.
पिता - चौधरी मीर सिंह
माता - श्रीमती नेत्रा कौर

जन्म

चरण सिंह का जन्म एक जाट परिवार मेबाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23 दिसम्बर,1902 को हुआ। इनके परिवार का सम्बन्ध बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह से था जिन्होंने 1887 की क्रान्ति में विशेष योगदान दिया था। ब्रिटिश हुकूमत ने नाहर सिंह को दिल्ली के चाँदनी चौक में फ़ाँसी पर चढ़ा दिया था। अंग्रेज़ों के अत्याचार से बचने के लिए नाहर सिंह के समर्थक और चौधरी चरण सिंह के दादा उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले में निष्क्रमण कर गए।

शिक्षा

चौधरी चरण सिंह को आरम्भ से ही शैक्षणिक वातावरण प्राप्त हुआ जिसके कारण उनका शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान रहा। उनकी प्राथमिक शिक्षा नूरपुर में ही हुई और उसके बाद मैट्रिकुलेशन के लिए उनका दाखिला मेरठ के सरकारी हाई स्कूल में करा दिया गया। सन 1923 में में चरण सिंह ने विज्ञान विषय में स्नातक किया और दो वर्ष बाद सन 1925 में उन्होंने ने कला वर्ग में स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई की और फिर विधि की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सन 1928 में गाज़ियाबाद में वक़ालत आरम्भ कर दिया। वकालत के दौरान वे अपनी ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष उन्हें न्यायपूर्ण प्रतीत होता था।

राजनीतिक जीवन

1937 में सबसे पहले वे छपरौली से चरण सिंह उत्तर प्रदेश वैधानिक असेंबली के लिए चुने गये थे और फिर उन्होंने 1946, 1952 और 1967 में निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया। 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पन्त की सरकार में वे संसदीय सेक्रेटरी बने और बहुत से विभागों में कार्यरत थे, जैसे की रेवेन्यु, मेडिकल, सामाजिक स्वास्थ विभाग, न्याय और सुचना विभाग इत्यादि। जून 1951 में उनकी नियुक्ती राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में की गयी और उन्होंने न्याय और सुचना विभाग का चार्ज दिया गया। बाद में 1952 में डॉ. संपूर्णानंद के कैबिनेट में वे रेवेन्यु और एग्रीकल्चर मंत्री बने। इसके बाद अप्रैल 1959 में जब उन्होंने इस्तीफा दिया तब उन्हें रेवेन्यु और ट्रांसपोर्ट विभाग का चार्ज दिया गया। श्री सी.बी. गुप्ता की मिनिस्ट्री में वे होम एंड एग्रीकल्चर मिनिस्टर (1960) थे। श्री चरण सिंह ने श्रीमती सुचेता कृपलानी की मिनिस्ट्री में एग्रीकल्चर एंड फारेस्ट मंत्री (1962-63) रहते हुए देश की सेवा की थी। इसके बाद में उन्होंने एग्रीकल्चर विभाग को 1965 में छोड़ दिया था और 1966 में उन्होंने स्थानिक सरकारी विभागों का चार्ज दिया गया था।
वो किसानों के नेता माने जाते रहे हैं। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था।  किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। वो 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दुबारा 17 फ़रवरी 1970 के वे मुख्यमंत्री बने। उसके बाद वो केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बने। श्री चरण सिंह ने बहुत से पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश राज्य की सेवा की है और वहाँ के लोगो का जीत जितने में भी वे सफल हुए। चरण सिंह अपने राज्य में हमेशा से ही कठिन परिश्रम करने वाले और ईमानदार नेता के रूप में पहचाने जाते है।

अनमोल विचार

1.असली भारत गांवों में रहता है।

2. भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वो देश कभी, चाहे कोई भी लीडर आ जाये, चाहे कितना ही अच्छा प्रोग्राम चलाओ … वो देश तरक्की नहीं कर सकता।

3. किसानों की दशा सुधरेगी तो देश सुधरेगा।

4. चौधरी का मतलब, जो हल की चऊँ को धरा पर चलाता है।

5. किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होगी तब तक देश की प्रगति संभव नहीं है।

6. किसान इस देश का मालिक है, परन्तु वह अपनी ताकत को भूल बैठा है।

7. राष्ट्र तभी संपन्न हो सकता है जब उसके ग्रामीण क्षेत्र का उन्नयन किया गया हो तथा ग्रामीण क्षेत्र की क्रय शक्ति अधिक हो।

8. देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है।

9. किसानों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती तब तक औधोगिक उत्पादों की खपत भी संभव नहीं है।

मृत्यु

29 मई 1987 को इनका निधन हो गया।

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