Sunday 21 January 2018

Acharya Mahavir Prasad Dwivedi


महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई. में उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले के दौलतपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रामसहाय द्विवेदी था। कहा जाता है कि उन्हें महावीर का इष्ट था, इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम महावीर सहाय रखा।

शिक्षा

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। प्रधानाध्यापक ने भूल से इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था। हिन्दी साहित्य में यह भूल स्थायी बन गयी। तेरह वर्ष की अवस्था में अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए यह रायबरेली के ज़िला स्कूल में भर्ती हुए। यहाँ संस्कृत के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय फ़ारसी लेना पड़ा। इन्होंने इस स्कूल में ज्यों-त्यों एक वर्ष काटा। उसके बाद कुछ दिनों तक उन्नाव ज़िले के 'रनजीत पुरवा स्कूल' में और कुछ दिनों तक फ़तेहपुर में पढ़ने के बाद यह पिता के पास बम्बई चले गए। बम्बई में इन्होंने संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेज़ी का अभ्यास किया।

भाषा

द्विवेदी जी सरल और सुबोध भाषा लिखने के पक्षपाती थे। उन्होंने स्वयं सरल और प्रचलित भाषा को अपनाया। उनकी भाषा में न तो संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है और न उर्दू-फारसी के अप्रचलित शब्दों की भरमार है वे गृह के स्थान पर घर और उच्च के स्थान पर ऊँचा लिखना अधिक पसंद करते थे। द्विवेदी जी ने अपनी भाषा में उर्दू और फारसी के शब्दों का निस्संकोच प्रयोग किया, किंतु इस प्रयोग में उन्होंने केवल प्रचलित शब्दों को ही अपनाया। द्विवेदी जी की भाषा का रूप पूर्णतः स्थित है। वह शुद्ध परिष्कृत और व्याकरण के नियमों से बंधी हुई है। उनका वाक्य-विन्यास हिंदी को प्रकृति के अनुरूप है कहीं भी वह अंग्रेज़ी या उर्दू के ढंग का नहीं।

शैली

द्विवेदी जी की शैली के मुख्यतः तीन रूप दृष्टिगत होते हैं-

परिचयात्मक शैली

द्विवेदी जी ने नये-नये विषयों पर लेखनी चलाई। विषय नये और प्रारंभिक होने के कारण द्विवेदी जी ने उनका परिचय सरल और सुबोध शैली में कराया। ऐसे विषयों पर लेख लिखते समय द्विवेदी जी ने एक शिक्षक की भांति एक बात को कई बार दुहराया है ताकि पाठकों की समझ में वह भली प्रकार आ जाए। इस प्रकार लेखों की शैली परिचयात्मक शैली है।

आलोचनात्मक शैली


हिंदी भाषा के प्रचलित दोषों को दूर करने के लिए द्विवेदी जी इस शैली में लिखते थे। इस शैली में लिखकर उन्होंने विरोधियों को मुंह-तोड़ उत्तर दिया। यह शैली ओजपूर्ण है। इसमें प्रवाह है और इसकी भाषा गंभीर है। कहीं-कहीं यह शैली ओजपूर्ण न होकर व्यंग्यात्मक हो जाती है। ऐसे स्थलों पर शब्दों में चुलबुलाहट और वाक्यों में सरलता रहती है।

विचारात्मक अथवा गवेषणात्मक शैली


गंभीर साहित्यिक विषयों के विवेचन में द्विवेदी जी ने इस शैली को अपनाया है। इस शैली के भी दो रूप मिलते हैं। पहला रूप उन लेखों में मिलता है जो किसी विवादग्रस्त विषय को लेकर जनसाधारण को समझाने के लिए लिखे गए हैं। इसमें वाक्य छोटे-छोटे हैं। भाषा सरल है। दूसरा रूप उन लेखों में पाया जाता है जो विद्वानों को संबोधित कर लिखे गए हैं।

पद्य (अनुवाद)

विनय विनोद 1889 ई.- भृतहरि के 'वैराग्य शतक' का दोहों में अनुवाद,
विहार वाटिका 1890 ई.- गीत गोविन्द का भावानुवाद,
स्नेह माला 1890 ई.- भृतहरि के 'श्रृंगार शतक' का दोहों में अनुवाद,
श्री महिम्न स्तोत्र 1891 ई.- संस्कृत के 'महिम्न स्तोत्र का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद,
गंगा लहरी 1891 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ की 'गंगा लहरी' का सवैयों में अनुवाद,
ऋतुतरंगिणी 1891 ई.- कालिदास के 'ऋतुसंहार' का छायानुवाद,
सोहागरात अप्रकाशित- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद,
कुमारसम्भवसार 1902 ई.- कालिदास के 'कुमार सम्भवम' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश।

गद्य (अनुवाद)

भामिनी-विलास 1891 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'भामिनी विलास' का अनुवाद,
अमृत लहरी 1896 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'यमुना स्तोत्र' का भावानुवाद,
बेकन-विचार-रत्नावली 1901 ई.- बेकन के प्रसिद्ध निबन्धों का अनुवाद,
शिक्षा 1906 ई.- हर्बर्ट स्पेंसर के 'एज्युकेशन' का अनुवाद,
'स्वाधीनता' 1907 ई.- जॉन स्टुअर्ट मिल के 'ऑन लिबर्टी' का अनुवाद,
जल चिकित्सा 1907 ई.- जर्मन लेखक लुई कोने की जर्मन पुस्तक के अंग्रेज़ी अनुवाद का अनुवाद,
हिन्दी महाभारत 1908 ई.-'महाभारत' की कथा का हिन्दी रूपान्तर,
रघुवंश 1912 ई.- 'रघुवंश' महाकाव्य का भाषानुवाद,
वेणी-संहार 1913 ई.- संस्कृत कवि भट्टनारायण के 'वेणीसंहार' नाटक का अनुवाद,
कुमार सम्भव 1915 ई.- कालिदास के 'कुमार सम्भव' का अनुवाद,
मेघदूत 1917 ई.- कालिदास के 'मेघदूत' का अनुवाद,
किरातार्जुनीय 1917 ई.- भारवि के 'किरातार्जुनीयम्' का अनुवाद,
प्राचीन पण्डित और कवि 1918 ई.- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय,
आख्यायिका सप्तक 1927 ई.- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद

मौलिक पद्य रचनाएँ

देवी स्तुति-शतक 1892 ई.,
कान्यकुब्जावलीव्रतम 1898 ई.,
समाचार पत्र सम्पादन स्तव: 1898 ई.,
नागरी 1900 ई.,
कान्यकुब्ज- अबला-विलाप 1907 ई.,
काव्य मंजूषा 1903 ई.,
सुमन 1923 ई.,
द्विवेदी काव्य-माला 1940 ई.,
कविता कलाप 1909 ई.|

मौलिक गद्य रचनाएँ

तरुणोपदेश (अप्रकाशित),
हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना 1901 ई.,
वैज्ञानिक कोश 1906 ई.,,
'नाट्यशास्त्र' 1912 ई.,
विक्रमांकदेवचरितचर्चा 1907 ई.,
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति 1907 ई.,
सम्पत्तिशास्त्र 1907 ई.,
कौटिल्य कुठार 1907 ई.,
कालिदास की निरकुंशता 1912 ई.,
वनिता-विलाप 1918 ई.,
औद्यागिकी 1920 ई.,
रसज्ञ रंजन 1920 ई.,
कालिदास और उनकी कविता 1920 ई.,
सुकवि संकीर्तन 1924 ई.,
अतीत स्मृति 1924 ई.,
साहित्य सन्दर्भ 1928 ई.,
अदभुत आलाप 1924 ई.,
महिलामोद 1925 ई.,
आध्यात्मिकी 1928 ई.,
वैचित्र्य चित्रण 1926 ई.,
साहित्यालाप 1926 ई.,
विज्ञ विनोद 1926 ई.,
कोविद कीर्तन 1928 ई.,
विदेशी विद्वान् 1928 ई.,
प्राचीन चिह्न 1929 ई.,
चरित चर्या 1930 ई.,
पुरावृत्त 1933 ई.,
दृश्य दर्शन 1928 ई.,
आलोचनांजलि 1928 ई.,
चरित्र चित्रण 1929 ई.,
पुरातत्त्व प्रसंग 1929 ई.,
साहित्य सीकर 1930 ई.,
विज्ञान वार्ता 1930 ई.,
वाग्विलास 1930 ई.,
संकलन 1931 ई.,
विचार-विमर्श 1931 ई.

मृत्यु


21 दिसम्बर सन् 1938 ई. को रायबरेली में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का स्वर्गवास हो गया।

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