बाबू श्याम सुंदर दास का जन्म विद्वानों की काशी में 1875 में हुआ था। इनका परिवार लाहौर से आकर काशी में बस गया था और कपड़े का व्यापार करता था। इनके पिता का नाम लाला देवी दास खन्ना था। बनारस के क्वींस कालेज से सन् 1897 में बी. ए. किया। जब इंटर के छात्र थे तभी सन् 1893 में मित्रों के सहयोग से काशी नागरीप्रचारिणी सभा की नींव डाली और 45 वर्षों तक निरंतर उसके संवर्धन में बहुमूल्य योग देते रहे। 1895-96 में "नागरीप्रचारिणी पत्रिका" निकलने पर उसके प्रथम संपादक नियुक्त हुए और बाद में कई बार वर्षों तक उसका संपादन किया। "सरस्वती" के भी आरंभिक तीन वर्षों (1899-1902) तक संपादक रहे। 1899 में हिंदु स्कूल के अध्यापक नियुक्त हुए और कुछ दिनों बाद हिंदू कालेज में अंग्रेजी के जूनियर प्रोफेसर नियुक्त हुए। 1909 में जम्मू महाराज के स्टेट आफिस में काम करने लगे जहाँ दो वर्ष रहे। 1913 से 1921 तक लखनऊ के कालीचरण हाई स्कूल में हेडमास्टर रहे। इनके उद्योग से विद्यालय की अच्छी उन्नति हुई। 1921 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग खुल जाने पर इन्हें अध्यक्ष के रूप में बुलाया गया।
भाषा शैली
श्यामसुंदर दास ने शुद्ध साहित्यिक हिंदी का प्रयोग किया तथा विदेशी शब्दों को भी हिंदी के सांचे में ढाल लिया। इनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम और प्रचलित तद्भव शब्दों की अधिकता है। उर्दू शब्दों को भी ग्रहण करने के पूर्व उन्होंने हिंदी भाषा की प्रकृति के अनुसार उनके रूप और ध्वनि में परिवर्तन किया। उनकी भाषा क्लिष्ट और जटिल नहीं है तथा सर्वत्र सुगठित और सुलझी हुई है। गूढ़ से गूढ़ विषयों के प्रतिपादन में उनकी भाषा सफल रही। भाषा गंभीर और संयत होते हुए भी धारावाहिक प्रवाह लिए हुए है। श्यामसुंदर दास जी ने शैली को भाषा का व्यक्तिगत प्रयोग माना, अतः शैली विषयक उनका मंतव्य भाषा विवेचन के प्रसंग में आ गया है। इनकी शैली में सरलता और सुबोधता का सहज गुण है, जो विषयानुरूप सर्वत्र यथावसर परिवर्तनशील रही। इनके निबंध प्राय: तीन प्रकार के हैं, तदनुरूप इनकी लेखनी शैली भी तीन प्रकार की हो गयी है- व्याख्यात्मक, विचारात्मक और गवेषणात्मक, किन्तु बाबू जी मूलतः व्यास शैली के ही लेखक रहे।
कृतियॉं
निबन्ध-संग्रह
'गद्य कुसुमावली' इनके श्रेष्ठ निबन्धों का संकलन है। 'नागरी प्रचारिणी' पत्रिका में भी इनके अनेक निबन्ध प्रकाशित हुए।
समालोचना
गोस्वामी तुलसीदास, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
समीक्षा ग्रन्थ
साहित्यालोचन, रूपक रहस्य।
इतिहास
साहित्य का इतिहास' एवं 'कवियो की खोज आदि में हिन्दी साहित्य के विकास पर प्रकाश डला गया है।
भाषाविज्ञान
भाषाविज्ञान, हिन्दी भाषा का विकास, भाषा रहस्य।
सम्पादन
हिन्दी-कोविद-रत्नमाला, हिन्दी शब्द-सागर, वैज्ञानिक कोश, मनोरंजन पुस्तक-माला, नासिकेतोपख्यान, पृथ्वीराजरासो, इन्द्रावती, वनिताविनोद, छत्रप्रकाश, हम्मीररासो, शकुन्तला नाटक, दीनदयाल गिरि को ग्रन्थावली, मेघदूत, परमालरासो, रामचरितमानस, आदि।
निधन
जीवन के अंतिम वर्षों में श्यामसुंदर दास बीमार पड़े तो फिर उठ न सके। सम्वत 2002 (1945 ई.) के लगभग उनका स्वर्गवास हो गया।
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