'सरदार पूर्ण सिंह' का जन्म सन् 1881 ई० में ऐबटाबाद जिले के एक गांव में हुआ था, जो अब पकिस्तान में है। इनके पिता का नाम सरदार करतार सिंह भागर था जो एक सरकारी कर्मचारी थे। पूर्ण सिंह अपने माता पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे।
शिक्षा
पूर्णसिंह की प्रारंभिक शिक्षा तहसील हवेलियाँ में हुई। यहाँ मस्जिद के मौलवी से उन्होंने उर्दू पढ़ी और सिक्ख धर्मशाला के भाई बेलासिंह से गुरुमुखी सीखी। रावलपिंडी के मिशन हाईस्कूल से 1897 में एंट्रेंस परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन 1899 में डी. ए. वी. कॉलेज, लाहौर; 28 सितम्बर, 1900 को वे टोक्यो विश्वविद्यालय, जापान के फैकल्टी ऑफ़ मेडिसिन में औषधि निर्माण संबंधी रसायन का अध्ययन करने के लिये "विशेष छात्र' के रूप में प्रविष्ट हो गए और वहाँ उन्होंने पूरे तीन वर्ष तक अध्ययन किया।
गृहस्थ जीवन
जापान में अध्ययन के दौरान सरदार पूर्ण सिंह की भेंट स्वामी रामतीर्थ से हुई। स्वामी रामतीर्थ से प्रभावित होकर इन्होने वहीं सन्यास ले लिया और भारत लौट आये। स्वामीजी की मृत्यु के बाद इनके विचारों में परिवर्तन हुआ और इन्होने विवाह करके गृहस्थ जीवन व्यतीत करना आरम्भ किया।
सरदार पूर्ण सिंह ने देहरादून में नौकरी कर ली किन्तु अपनी स्वतंत्र प्रकृति के कारण कुछ समय बाद नौकरी छोड़ दी और ग्वालियर चले गए। वहां भी मन न लगने के बाद ये पंजाब के जड़ाबाला नामक ग्राम में जाकर खेती करने लगे।
कृतियां एवं निबंध
पूर्णसिंह ने अंग्रेज़ी, पंजाबी तथा हिंदी में अनेक ग्रंथों की रचना की, जो इस प्रकार हैं-
अंग्रेज़ी कृतियां
‘दि स्टोरी ऑफ स्वामी राम’, ‘दि स्केचेज फ्राम सिक्ख हिस्ट्री', हिज फीट’, ‘शार्ट स्टोरीज’, ‘सिस्टर्स ऑफ दि स्पीनिंग हवील’, ‘गुरु तेगबहादुर’ लाइफ’, प्रमुख हैं।
पंजाबी कृतियां
‘अवि चल जोत’, ‘खुले मैदान’, ‘खुले खुंड’, ‘मेरा सांई’, ‘कविदा दिल कविता’।
हिंदी निबंध
‘सच्ची वीरता’, ‘कन्यादान’, ‘पवित्रता’, ‘आचरण की सभ्यता’, ‘मजदूरी और प्रेम’ तथा अमेरिका का मस्ताना योगी वाल्ट हिवट मैंन।
मृत्यु
नवंबर, 1930 में वे बीमार पड़े, जिससे उन्हें तपेदिक रोग हो गया और 31 मार्च, 1931 को देहरादून में उनका देहांत हो गया।
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