जगदीशचन्द्र माथुर का जन्म 16 जुलाई, 1917 ई. खुर्जा, बुलंदशहर ज़िला, उत्तर प्रदेश में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा खुर्जा में हुई। उच्च शिक्षा युइंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद और प्रयाग विश्वविद्यालय में हुई। प्रयाग विश्वविद्यालय का शैक्षिक वातावरण औऱ प्रयाग के साहित्यिक संस्कार रचनाकार के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका हैं। 1939 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. (अंग्रेज़ी) करने के बाद 1941 ई. में 'इंडियन सिविल सर्विस' में चुन लिए गए।
साहित्यिक जीवन
अध्ययनकाल से ही उनका लेखन प्रारंभ होता है। आरम्भ से ही आपकी रूचि अभिनय की ओर थी। प्रयाग विश्वविद्यालय में अपने क्षात्र जीवन में आपने विश्वविद्यालय के नाटकों में बार-बार हिस्सा लिया। 1930 ई. में तीन छोटे नाटकों के माध्यम से वे अपनी सृजनशीलता की धारा के प्रति उन्मुख हुए। प्रयाग में उनके नाटक 'चाँद', 'रुपाभ' पत्रिकाओं में न केवल छपे ही, बल्कि इन्होंने 'वीर अभिमन्यु', आदि नाटकों में भाग लिया। 'भोर का तारा' में संग्रहीत सारी रचनाएँ प्रयाग में ही लिखी गईं। यह नाम प्रतीक रूप में शिल्प और संवेदना दोनों दृष्टियों से माथुर के रचनात्मक व्यक्तित्व के 'भोर का तारा' ही है। इसके बाद की रचनाओं में समकालीनता और परंपरा के प्रति गहराई क्रमशः बढ़ती गई है। व्यक्तियों, घटनाओं और देशके विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों से प्राप्त अनुभवों ने सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
प्रमुख कृतियाँ
नाटक
भोर का तारा' (1946 ई.),
कोणार्क' (1951 ई.),
ओ मेरे सपने' (1950 ई.)
शारदीया' (1959 ईं),
दस तस्वीरें' (1962 ई.), '
परंपराशील नाट्य' (1968 ई.),
पहला राजा' (1970 ई.)
जिन्होंने जीना जाना' (1972 ई.)
निधन
जगदीशचंद्र माथुर का निधन 14 मई, 1978 को हुआ।
साहित्यिक जीवन
अध्ययनकाल से ही उनका लेखन प्रारंभ होता है। आरम्भ से ही आपकी रूचि अभिनय की ओर थी। प्रयाग विश्वविद्यालय में अपने क्षात्र जीवन में आपने विश्वविद्यालय के नाटकों में बार-बार हिस्सा लिया। 1930 ई. में तीन छोटे नाटकों के माध्यम से वे अपनी सृजनशीलता की धारा के प्रति उन्मुख हुए। प्रयाग में उनके नाटक 'चाँद', 'रुपाभ' पत्रिकाओं में न केवल छपे ही, बल्कि इन्होंने 'वीर अभिमन्यु', आदि नाटकों में भाग लिया। 'भोर का तारा' में संग्रहीत सारी रचनाएँ प्रयाग में ही लिखी गईं। यह नाम प्रतीक रूप में शिल्प और संवेदना दोनों दृष्टियों से माथुर के रचनात्मक व्यक्तित्व के 'भोर का तारा' ही है। इसके बाद की रचनाओं में समकालीनता और परंपरा के प्रति गहराई क्रमशः बढ़ती गई है। व्यक्तियों, घटनाओं और देशके विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों से प्राप्त अनुभवों ने सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
प्रमुख कृतियाँ
नाटक
भोर का तारा' (1946 ई.),
कोणार्क' (1951 ई.),
ओ मेरे सपने' (1950 ई.)
शारदीया' (1959 ईं),
दस तस्वीरें' (1962 ई.), '
परंपराशील नाट्य' (1968 ई.),
पहला राजा' (1970 ई.)
जिन्होंने जीना जाना' (1972 ई.)
निधन
जगदीशचंद्र माथुर का निधन 14 मई, 1978 को हुआ।
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