प्रणव मुखर्जी
जन्म - 11 दिसम्बर, 1955
प्रारम्भिक जीवन
श्री मुखर्जी बंगाल प्रांत के मिराटी गाँव में एक बंगाली परिवार में 11 दिसम्बर, 1955 को पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था। वे सुश्री सुव्रा मुखर्जी के साथ 13 जुलाई, 1957 को परिणय सूत्र में बंधे। उनके दो पुत्र तथा एक लड़की है। पढ़ाई, बागवानी और संगीत उनके मुख्य शौक हैं। उनके पिताजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे तथा उन्होंने 10 वर्षों से ज्यादा का समय जेल में बिताया।
श्री मुखर्जी ने सुरी विद्यासागर कालेज से स्नातकोत्तर की परीक्षा इतिहास और राजनीति शास्त्र जैसे विषयों को लेकर पास की। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी की पढ़ाई पूरी की और अपनी जिंदगी की शुरूआत डिप्टी एकाउंटेंट जनरल (तार विभाग) में वरीय लिपिक के रूप में शुरू की। उसके बाद उन्होंने पत्रकारिता की परीक्षा भी पास की। उन्होंने बंगाली पब्लिकेशन के लिए भी कार्य किया। वे भारतीय सांख्यिकी विभाग कलकत्ता में चेयरमैन के पद पर भी आसीन हुए। वे रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय और निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के चेयरमैन और अध्यक्ष भी रहे। वे बंगिया साहित्य परिषद और विघान मेमोरियल ट्रस्ट के पूर्व ट्रस्टी भी हैं।
राजनीतिक जीवन
प्रणब मुख़र्जी का राजनितिक करियर सन 1969 में प्रारंभ हुआ जब उन्होंने वी.के. कृष्ण मेनन के चुनाव प्रचार (मिदनापुर लोकसभा सीट के लिए उप-चुनाव) का सफल प्रबंधन किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उनके प्रतिभा को पहचाना और उन्हें भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल कर जुलाई 1969 में राज्य सभा का सदस्य बना दिया। इसके बाद मुख़र्जी सन कई बार (1975, 1981, 1993 और 1999) राज्य सभा के लिए चुने गए।
धीरे-धीरे प्रणब मुख़र्जी इंदिरा गाँधी के चहेते बन गए और सन 1973 में केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए। सन 1975-77 के आपातकाल के दौरान उनपर गैर-संविधानिक तरीकों का उपयोग करने के आरोप लगे और जनता पार्टी द्वारा गठित ‘शाह आयोग’ ने उन्हें दोषी भी पाया। बाद में प्रणब इन सब आरोपों से पाक-साफ़ निकल आये और सन 1982-84 में देश के वित्त मंत्री रहे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सरकार की वित्तीय दशा दुरुस्त करने में कुछ सफलता पायी। उन्ही के कार्यकाल के दौरान मनमोहन सिंह को रिज़र्व बैंक का गवर्नर बनाया गया।
सन 1980 में वे राज्य सभा में कांग्रेस पार्टी के नेता बनाये गए। इस दौरान मुख़र्जी को सबसे शक्तिशाली कैबिनेट मंत्री माना जाने लगा और प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में वे ही कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करते थे।
इसके पश्चात उन्होंने कांग्रेस छोड़ अपने राजनीतिक दल ‘राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस’ का गठन किया पर सन 1989 में उन्होंने अपने दल का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। पी.वी. नरसिंह राव सरकार में उनका राजनीतिक कैरियर पुनर्जीवित हो उठा, जब उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया और सन 1995 में विदेश मन्त्री के तौर पर नियुक्त किया गया। उन्होंने नरसिंह राव मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मन्त्री के रूप में कार्य किया। सन 1997 में प्रणब को उत्कृष्ट सांसद चुना गया।
सन 2004 मं प्रणब ने पहली बार लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा और पश्चिम बंगाल के जंगीपुर संसदीय क्षेत्र से जीत हासिल की। सन 2004 से लेकर 2012 में राष्ट्रपति बनने तक प्रणब मुख़र्जी यू.पी.ए. गठबंधन सरकार में कई महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नजर आये। इस दौरान वे देश के रक्षा, वित्त और विदेश मंत्री रहे। इसी दौरान मुख़र्जी कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधान दल के मुखिया भी रहे।
सम्मान
न्यूयॉर्क से प्रकाशित पत्रिका, यूरोमनी के एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 1984 में दुनिया के पाँच सर्वोत्तम वित्त मन्त्रियों में से एक प्रणव मुखर्जी भी थे।
उन्हें सन् 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का अवार्ड मिला।
वित्त मन्त्रालय और अन्य आर्थिक मन्त्रालयों में राष्ट्रीय और आन्तरिक रूप से उनके नेतृत्व का लोहा माना गया। वह लम्बे समय के लिए देश की आर्थिक नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। उनके नेत़त्व में ही भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण की 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर की अन्तिम किस्त नहीं लेने का गौरव अर्जित किया। उन्हें प्रथम दर्जे का मन्त्री माना जाता है और सन 1980-1985 के दौरान प्रधानमन्त्री की अनुपस्थिति में उन्होंने केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता की।
उन्हें सन् 2008 के दौरान सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से नवाजा गया।
प्रणब मुखर्जी ने कई कितावें भी लिखी हैं जिनके प्रमुख हैं मिडटर्म पोल, बियोंड सरवाइवल, ऑफ द ट्रैक- सागा ऑफ स्ट्रगल एंड सैक्रिफाइस, इमर्जिंग डाइमेंशन्स ऑफ इंडियन इकोनॉमी, तथा चैलेंज बिफोर द नेशन।
श्री मुखर्जी ने सुरी विद्यासागर कालेज से स्नातकोत्तर की परीक्षा इतिहास और राजनीति शास्त्र जैसे विषयों को लेकर पास की। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी की पढ़ाई पूरी की और अपनी जिंदगी की शुरूआत डिप्टी एकाउंटेंट जनरल (तार विभाग) में वरीय लिपिक के रूप में शुरू की। उसके बाद उन्होंने पत्रकारिता की परीक्षा भी पास की। उन्होंने बंगाली पब्लिकेशन के लिए भी कार्य किया। वे भारतीय सांख्यिकी विभाग कलकत्ता में चेयरमैन के पद पर भी आसीन हुए। वे रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय और निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के चेयरमैन और अध्यक्ष भी रहे। वे बंगिया साहित्य परिषद और विघान मेमोरियल ट्रस्ट के पूर्व ट्रस्टी भी हैं।
राजनीतिक जीवन
प्रणब मुख़र्जी का राजनितिक करियर सन 1969 में प्रारंभ हुआ जब उन्होंने वी.के. कृष्ण मेनन के चुनाव प्रचार (मिदनापुर लोकसभा सीट के लिए उप-चुनाव) का सफल प्रबंधन किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उनके प्रतिभा को पहचाना और उन्हें भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल कर जुलाई 1969 में राज्य सभा का सदस्य बना दिया। इसके बाद मुख़र्जी सन कई बार (1975, 1981, 1993 और 1999) राज्य सभा के लिए चुने गए।
धीरे-धीरे प्रणब मुख़र्जी इंदिरा गाँधी के चहेते बन गए और सन 1973 में केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए। सन 1975-77 के आपातकाल के दौरान उनपर गैर-संविधानिक तरीकों का उपयोग करने के आरोप लगे और जनता पार्टी द्वारा गठित ‘शाह आयोग’ ने उन्हें दोषी भी पाया। बाद में प्रणब इन सब आरोपों से पाक-साफ़ निकल आये और सन 1982-84 में देश के वित्त मंत्री रहे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सरकार की वित्तीय दशा दुरुस्त करने में कुछ सफलता पायी। उन्ही के कार्यकाल के दौरान मनमोहन सिंह को रिज़र्व बैंक का गवर्नर बनाया गया।
सन 1980 में वे राज्य सभा में कांग्रेस पार्टी के नेता बनाये गए। इस दौरान मुख़र्जी को सबसे शक्तिशाली कैबिनेट मंत्री माना जाने लगा और प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में वे ही कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करते थे।
इसके पश्चात उन्होंने कांग्रेस छोड़ अपने राजनीतिक दल ‘राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस’ का गठन किया पर सन 1989 में उन्होंने अपने दल का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। पी.वी. नरसिंह राव सरकार में उनका राजनीतिक कैरियर पुनर्जीवित हो उठा, जब उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया और सन 1995 में विदेश मन्त्री के तौर पर नियुक्त किया गया। उन्होंने नरसिंह राव मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मन्त्री के रूप में कार्य किया। सन 1997 में प्रणब को उत्कृष्ट सांसद चुना गया।
सन 2004 मं प्रणब ने पहली बार लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा और पश्चिम बंगाल के जंगीपुर संसदीय क्षेत्र से जीत हासिल की। सन 2004 से लेकर 2012 में राष्ट्रपति बनने तक प्रणब मुख़र्जी यू.पी.ए. गठबंधन सरकार में कई महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नजर आये। इस दौरान वे देश के रक्षा, वित्त और विदेश मंत्री रहे। इसी दौरान मुख़र्जी कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधान दल के मुखिया भी रहे।
सम्मान
न्यूयॉर्क से प्रकाशित पत्रिका, यूरोमनी के एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 1984 में दुनिया के पाँच सर्वोत्तम वित्त मन्त्रियों में से एक प्रणव मुखर्जी भी थे।
उन्हें सन् 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का अवार्ड मिला।
वित्त मन्त्रालय और अन्य आर्थिक मन्त्रालयों में राष्ट्रीय और आन्तरिक रूप से उनके नेतृत्व का लोहा माना गया। वह लम्बे समय के लिए देश की आर्थिक नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। उनके नेत़त्व में ही भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण की 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर की अन्तिम किस्त नहीं लेने का गौरव अर्जित किया। उन्हें प्रथम दर्जे का मन्त्री माना जाता है और सन 1980-1985 के दौरान प्रधानमन्त्री की अनुपस्थिति में उन्होंने केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता की।
उन्हें सन् 2008 के दौरान सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से नवाजा गया।
प्रणब मुखर्जी ने कई कितावें भी लिखी हैं जिनके प्रमुख हैं मिडटर्म पोल, बियोंड सरवाइवल, ऑफ द ट्रैक- सागा ऑफ स्ट्रगल एंड सैक्रिफाइस, इमर्जिंग डाइमेंशन्स ऑफ इंडियन इकोनॉमी, तथा चैलेंज बिफोर द नेशन।
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