पूरा नाम - चन्द्रशेखर सिंह
जन्म - 17 अप्रैल, 1927
जन्मस्थान - उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित इब्राहिमपत्ती गांव
मृत्यु - 8 जुलाई, 2007
जन्म - 17 अप्रैल, 1927
जन्मस्थान - उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित इब्राहिमपत्ती गांव
मृत्यु - 8 जुलाई, 2007
जन्म
उनका जन्म 17 अप्रैल, 1927 में पूर्वी उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपत्ती गांव के एक कृषक परिवार में हुआ था।
शिक्षा
इनकी स्कूली शिक्षा भीमपुरा के राम करन इण्टर कॉलेज में हुई। उन्होंने 1951 में एम ए डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया। उन्हें विद्यार्थी राजनीति में एक "फायरब्रान्ड" के नाम से जाना जाता था। विद्यार्थी राजनीती में वे जल्दी उत्तेजित होने वाले इंसान के रूप में जाने जाते है। डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद अपने राजनैतिक करियर की शुरुवात की थी।
राजनीतिक जीवन
राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही वह समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए थे। और बाद में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, बल्लिया से वे सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त हुए। एक साल के भीतर ही, उनकी नियुक्ती उत्तर प्रदेश राज्य में PSP के जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर की गयी। 1955-56 में वे राज्य में पार्टी के जनरल सेक्रेटरी बने। 1962 में उत्तर प्रदेश के राज्य सभा चुनाव से उनका संसदीय करियर शुरू हुआ। अपने राजनीतिक करियर के शुरुवाती दिनों में वे आचार्य नरेंद्र देव के साथ रहने लगे थे। 1962 से 1967 तक शेखर का संबंध राज्य सभा से था। लेकिन जब उस समय आनी-बानी की घोषणा की गयी थी, तब उन्हें कांग्रेस पार्टी का राजनेता माना गया था और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर पटियाला जेल भी भेजा था। जेल में बिताये समय में उन्होंने हिंदी में एक डायरी लिखी थी जो बाद में ‘मेरी जेल डायरी’ के नाम से प्रकाशित हुई। ‘सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता’ उनके लेखन का एक प्रसिद्ध संकलन है। उन्होंने देश की भलाई के लिए राष्ट्रिय स्तर पर 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक दक्षिण के कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट (महात्मा गांधी की समाधि) तक लगभग 4260 किलोमीटर की मैराथन दूरी पैदल (पदयात्रा) तय की थी। उनके इस पदयात्रा का एकमात्र लक्ष्य था – लोगों से मिलना एवं उनकी महत्वपूर्ण समस्याओं को समझना। चंद्र शेखर सोशलिस्ट पार्टी के मुख्य राजनेता थे। उन्होंने बैंको के राष्ट्रीयकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सबसे पहले 1967 में वे लोक सभा में दाखिल हुए थे। कांग्रेस पार्टी के सदस्य रहते हुए, उन्होंने कई बार इंदिरा गाँधी और उनके कार्यो की आलोचना की थी। इस वजह से 1975 में उन्हें कांग्रेस पार्टी से अलग होना पड़ा था। इसी कारणवश आनी-बानी की परिस्थिति में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। आनी-बानी के तुरंत बाद, चंद्रशेखर 1977 में स्थापित जनता पार्टी के अध्यक्ष बन गये और उन्होंने राज्य में पहली अकांग्रेस सरकार बनायी। जिसमे उन्हें सफलता भी मिली। इसके बाद संसदीय चुनाव में जनता पार्टी ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया और फिर उन्होंने मोरारी देसाई के साथ एक संगठन भी बनाया। 1988 में यह पार्टी दूसरी पार्टियों में मिल गयी और फिर व्ही.पी. सिंह के नेतृत्व में एक नयी सरकार का गठन किया गया। इसके कुछ समय बाद एक बार फिर चंद्रशेखर ने संगठित होकर, जनता दल सोशलिस्ट नाम के पार्टी की स्थापना की। फिर कांग्रेस की सहायता से, विशेषतः राजीव गाँधी के सहयोग से वे नवम्बर 1990 में व्ही.पी. सिंह की जगह प्रधानमंत्री बने। चंद्र शेखर सात महीनो तक प्रधानमंत्री भी बने थे, चरण सिंह के बाद वे दुसरे सबसे कम समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने डिफेन्स और होम अफेयर्स के कार्यो को भी संभाला था। उनकी सरकार में 1990-91 का खाड़ी युद्ध भी शामिल है। इतना ही नहीं बल्कि उनकी सरकार पूरा बजट भी पेश नही कर पायी थी क्योकि कांग्रेस ने उनका साथ देने से मना कर दिया था। 1991 की बसंत ऋतू में भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने दुसरे चुनाव में हिस्सा लेने की ठानी थी। और इसके चलते 6 मार्च 1991 में ही चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।
मृत्यु
शेखरजी को मल्टिपल मायलोमा, एक प्रकार का प्लाज्मा कोष कैंसर हुआ था। उनको इस रोग के इलाज हेतु गंभीर अवस्था में नयी दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। उनके 80 वे जन्मदिन के एक हफ्ते बाद ही 8 जुलाई 2007 को चंद्रशेखर की मृत्यु हो गयी थी।
राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही वह समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए थे। और बाद में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, बल्लिया से वे सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त हुए। एक साल के भीतर ही, उनकी नियुक्ती उत्तर प्रदेश राज्य में PSP के जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर की गयी। 1955-56 में वे राज्य में पार्टी के जनरल सेक्रेटरी बने। 1962 में उत्तर प्रदेश के राज्य सभा चुनाव से उनका संसदीय करियर शुरू हुआ। अपने राजनीतिक करियर के शुरुवाती दिनों में वे आचार्य नरेंद्र देव के साथ रहने लगे थे। 1962 से 1967 तक शेखर का संबंध राज्य सभा से था। लेकिन जब उस समय आनी-बानी की घोषणा की गयी थी, तब उन्हें कांग्रेस पार्टी का राजनेता माना गया था और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर पटियाला जेल भी भेजा था। जेल में बिताये समय में उन्होंने हिंदी में एक डायरी लिखी थी जो बाद में ‘मेरी जेल डायरी’ के नाम से प्रकाशित हुई। ‘सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता’ उनके लेखन का एक प्रसिद्ध संकलन है। उन्होंने देश की भलाई के लिए राष्ट्रिय स्तर पर 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक दक्षिण के कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट (महात्मा गांधी की समाधि) तक लगभग 4260 किलोमीटर की मैराथन दूरी पैदल (पदयात्रा) तय की थी। उनके इस पदयात्रा का एकमात्र लक्ष्य था – लोगों से मिलना एवं उनकी महत्वपूर्ण समस्याओं को समझना। चंद्र शेखर सोशलिस्ट पार्टी के मुख्य राजनेता थे। उन्होंने बैंको के राष्ट्रीयकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सबसे पहले 1967 में वे लोक सभा में दाखिल हुए थे। कांग्रेस पार्टी के सदस्य रहते हुए, उन्होंने कई बार इंदिरा गाँधी और उनके कार्यो की आलोचना की थी। इस वजह से 1975 में उन्हें कांग्रेस पार्टी से अलग होना पड़ा था। इसी कारणवश आनी-बानी की परिस्थिति में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। आनी-बानी के तुरंत बाद, चंद्रशेखर 1977 में स्थापित जनता पार्टी के अध्यक्ष बन गये और उन्होंने राज्य में पहली अकांग्रेस सरकार बनायी। जिसमे उन्हें सफलता भी मिली। इसके बाद संसदीय चुनाव में जनता पार्टी ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया और फिर उन्होंने मोरारी देसाई के साथ एक संगठन भी बनाया। 1988 में यह पार्टी दूसरी पार्टियों में मिल गयी और फिर व्ही.पी. सिंह के नेतृत्व में एक नयी सरकार का गठन किया गया। इसके कुछ समय बाद एक बार फिर चंद्रशेखर ने संगठित होकर, जनता दल सोशलिस्ट नाम के पार्टी की स्थापना की। फिर कांग्रेस की सहायता से, विशेषतः राजीव गाँधी के सहयोग से वे नवम्बर 1990 में व्ही.पी. सिंह की जगह प्रधानमंत्री बने। चंद्र शेखर सात महीनो तक प्रधानमंत्री भी बने थे, चरण सिंह के बाद वे दुसरे सबसे कम समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने डिफेन्स और होम अफेयर्स के कार्यो को भी संभाला था। उनकी सरकार में 1990-91 का खाड़ी युद्ध भी शामिल है। इतना ही नहीं बल्कि उनकी सरकार पूरा बजट भी पेश नही कर पायी थी क्योकि कांग्रेस ने उनका साथ देने से मना कर दिया था। 1991 की बसंत ऋतू में भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने दुसरे चुनाव में हिस्सा लेने की ठानी थी। और इसके चलते 6 मार्च 1991 में ही चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।
मृत्यु
शेखरजी को मल्टिपल मायलोमा, एक प्रकार का प्लाज्मा कोष कैंसर हुआ था। उनको इस रोग के इलाज हेतु गंभीर अवस्था में नयी दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। उनके 80 वे जन्मदिन के एक हफ्ते बाद ही 8 जुलाई 2007 को चंद्रशेखर की मृत्यु हो गयी थी।
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