Tuesday 25 July 2017

Meerabai


पूरा नाम  – मीराबाई
जन्म - संवत् 1498
जन्मस्थान – कुडकी (राजस्थान)
पिता  – रतनसिंह
माता   – विरकुमारी

जन्म

मीराबाई का जन्म संवत् 1498 में पाली में कुड़की  नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता रतन सिंह राठोड़ एक छोटे से राजपूत रियासत के शासक थे। वे अपनी माता-पिता की इकलौती संतान थीं और जब वे छोटी बच्ची थीं तभी उनकी माता का निधन हो गया था। उन्हें संगीत, धर्म, राजनीति और प्राशासन जैसे विषयों की शिक्षा दी गयी। मीरा का लालन-पालन उनके दादा के देख-रेख में हुआ जो भगवान् विष्णु के गंभीर उपासक थे और एक योद्धा होने के साथ-साथ भक्त-हृदय भी थे और साधु-संतों का आना-जाना इनके यहाँ लगा ही रहता था ।
मीराबाई जब मात्र 3 साल की थीं तो एक साधु घूमते हुए उनके घर आये और उन्होंने उनके पिता को श्री कृष्ण की छोटी सी मूर्ति दी। रतन सिंह ने वो मूर्ति आशीर्वाद स्वरूप स्वीकार की लेकिन उन्होंने मीराबाई को वो मूर्ति नहीं दी क्योंकि उनको लगता था कि ये मीराबाई को अच्छी नहीं लगेगी लेकिन वो कृष्ण मूर्ति मीराबाई का मन मोह चुकी थी। उस दिन मीराबाई ने जब तक पिता से वो मूर्ति ना ले ली तब तक उन्होंने खाना नहीं खाया। श्री कृष्ण की उस मूर्ति से मीराबाई को इतना लगाव था कि वह हर समय उस मूर्ति  को अपने प्राणों की तरह अपने साथ रखती।

विवाह

मीरा का विवाह राणा सांगा के पुत्र और मेवाड़ के राजकुमार भोज राज के साथ सन 1516 में संपन्न हुआ। उनके पति भोज राज दिल्ली सल्तनत के शाशकों के साथ एक संघर्ष में सन 1518 में घायल हो गए और इसी कारण सन 1521 में उनकी मृत्यु हो गयी। उनके पति के मृत्यु के कुछ वर्षों के अन्दर ही उनके पिता और ससुर भी मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के साथ युद्ध में मारे गए। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं।

कृष्ण भक्ति

पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह वृंदावन गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था।

कृतियाँ

संत मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की :-
नरसी का मायरागीत
गोविंद टीका
राग गोविंद
राग सोरठ के पद

मृत्यु

ऐसा माना जाता है कि बहुत दिनों तक वृन्दावन में रहने के बाद मीरा द्वारिका चली गईं जहाँ सन 1560 में वे भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति में समा गईं।

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