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Sunday, 4 June 2017

Narendra Modi


पूरा नाम - नरेन्द्र दामोदरदास मोदी
जन्म - 17  सितम्बर, 1950
जन्म भूमि - गुजरात का एक छोटा सा कस्बा, वड़नगर ग्राम
पिता - दामोदरदास मूलचन्द मोदी
माता - हीराबेन मोदी

जन्म

नरेन्द्र मोदी का जन्म गुजरात के एक छोटे से कस्बे, वड़नगर ग्राम में हीराबेन मोदी और दामोदरदास मूलचन्द मोदी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में 17 सितम्बर 1950 को हुआ था। उनका परिवार बहुत ग रीब था और एक कच्चे मकान में रहता था। दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से मिलती थी। नरेंद्र मोदी की माँ आस पड़ोस में बर्तन साफ करती थी ताकि अपने बच्चों का पालन पोषण कर सके। उनके पिता रेलवे स्टेशन पर चाय की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। मोदी बचपन में अपने पिता की चाय की दुकान में उनका हाथ बटाते थे और रेल के डिब्बों में चाय बेचते थे।

शिक्षा

चाय की दुकान संभालने के साथ साथ मोदी पढ़ाई लिखाई का भी पूरा ध्यान रखते थे। मोदी को पढ़ने का बहुत शौक था। वे अक्सर अपने स्कूल के पुस्तकालय में घंटों बिता दिया करते थे।मोदी शुरू से ही एक कुशल वक्ता थे और उनमें नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता थी। वे नाटकों और भाषणों में जमकर हिस्सा लेते थे। नरेंद्र को खेलों में भी बहुत दिलचस्पी थी। बचपन से ही मोदी में देश भक्ति कूट कूट कर भरी थी। 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान मोदी रेलवे स्टेशन पर जवानों से भरी ट्रेन में उनके लिए खाना और चाय लेकर जाते थे। 1965 में भारत पाक युद्ध के दौरान भी मोदी ने जवानों की खूब सेवा की। युवावस्था में मोदी पर स्वामी विवेकानंद का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। 17 साल की उम्र में मोदी ने घर छोड़ दिया और अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की। उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों का भ्रमण किया। उन्होंने हिमालय में ऋषीकेश, बंगाल में रामकृष्ण आश्रम और पूर्वोत्तर भारत की यात्रा की और फिर दो वर्ष बाद वे घर लौट आए। इन यात्राओं से उन्हें स्वामी विवेकानंद को और गहराई से जानने का सौभाग्य मिला जिसने उन्हें पूरी तरह बदल दिया। जब वे घर लौटे, उनका मकसद साफ था- राष्ट्र की सेवा। वे केवल दो सप्ताह ही घर पर रुके और फिर अहमदाबाद के लिए निकल पड़े। वहाँ जाकर वे आर.एस.एस. के सदस्य बन गए। 1972 में मोदी आर.एस.एस. के प्रचारक बन गए और अपना सारा समय आर.एस.एस. को देने लगे। और इसी समय इन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की।

परिवारिक जीवन

13 वर्ष की आयु में नरेन्द्र की सगाई जसोदा बेन चमनलाल के साथ कर दी गयी और जब उनका विवाह हुआ, वह मात्र 17 वर्ष के थे। उन दोनों की शादी जरूर हुई परन्तु वे दोनों एक साथ कभी नहीं रहे। शादी के कुछ बरसों
बाद नरेन्द्र मोदी ने घर त्याग दिया था और एक प्रकार से उनका वैवाहिक जीवन लगभग समाप्त-सा ही हो गया।

राजनैतिक जीवन

उन्होंने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टी का जनाधार मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभायी। गुजरात में शंकरसिंह वाघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की ही रणनीति थी। अप्रैल 1990 में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लायी, जब गुजरात में 1995 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसके बाद शंकरसिंह वाघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया, जिसके परिणामस्वरूप केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमन्त्री बना दिया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुला कर भाजपा में संगठन की दृष्टि से केन्द्रीय मन्त्री का दायित्व सौंपा गया। 1995 में राष्ट्रीय मन्त्री के नाते उन्हें पाँच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1998 में उन्हें पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामन्त्री का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वह अक्टूबर 2001 तक काम करते रहे। भारतीय जनता पार्टी ने अक्टूबर 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेन्द्र मोदी को सौंप दी। गोआ में भाजपा कार्यसमिति द्वारा नरेन्द्र मोदी को 2014 के लोक सभा चुनाव अभियान की कमान सौंपी गयी थी। 13 सितम्बर 2013 को हुई संसदीय बोर्ड की बैठक में आगामी लोकसभा चुनावों के लिये प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। एक सांसद प्रत्याशी के रूप में उन्होंने देश की दो लोकसभा सीटों वाराणसी तथा वडोदरा से चुनाव लड़ा और दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से विजयी हुए। नरेन्द्र मोदी स्वतन्त्र भारत में जन्म लेने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो सन 2001 से 2014 तक लगभग 13 साल गुजरात के 14वें मुख्यमन्त्री रहे और हिन्दुस्तान के 15 वें प्रधानमन्त्री बने। नरेन्द्र मोदी ने  26 मई 2014 को प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली।

पुरस्कार

अप्रैल 2016 में नरेन्द्र मोदी सउदी अरब के उच्चतम नागरिक सम्मान 'अब्दुलअजीज अल सऊद के आदेश' से सम्मानित किये गये हैं। जून 2016 में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अफगानिस्तान के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार अमीर अमानुल्ला खान अवॉर्ड से सम्मानित किया।

Manmohan Singh


पूरा नाम - मनमोहन सिंह
जन्म - 26  सितम्बर, 1932
जन्म भूमि - पंजाब प्रांत का गाह नामक गॉव (इस समय पाकिस्तान में)
पिता - गुरुमुख सिंह
माता - अमृत कौर

जन्म

मनमोहन सिंह का जन्म अखंड भारत के पंजाब प्रान्त (वर्तमान पाकिस्तान) स्थित गाह में 26  सितम्बर, 1932 को एक सिख परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह था। छोटी उम्र में ही उनकी माता का निधन हो गया और इसलिए उनकी दादी ने उनका पालन-पोषण किया। देश के विभाजन के बाद उनका का परिवार अमृतसर चला आया।

शिक्षा

डॉ० मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की और आगे की पढाई करने के लिए वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये । कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी०एच०डी की डिग्री प्राप्‍त की थी। सन् 1955 और 1957 में कैंब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 'राइट्स पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी. फिल. भी किया। उनकी पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है। डॉ॰ सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे।

राजनैतिक जीवन

डॉ० मनमोहन सिंह  1971में  भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। इसके तुरन्त बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं। जब पी वी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मनमोहन सिंह को 1991 में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। इस समय डॉ॰ मनमोहन सिंह न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य थे। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें 1991 में असम से राज्यसभा के लिए चुना गया।1998-2004 के दौरान जब भारत में बीजेपी की सरकार थी तब वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। 2004 के आम चुनाव में लोक सभा चुनाव न जीत पाने के बावजूद मनमोहन सिंह को यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अनुमोदित किया। डॉ० मनमोहन सिंह को 2009 में एक बार फिर से भारत के प्रधानमंत्री के पद पर चुना गया। जवाहरलाल नेहरु के बाद मनमोहन सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्हें 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से प्रधानमंत्री चुना गया।

पुरस्कार

1994 में उन्हें डिस्टिंगग्विश्ट फेलो ऑफ़ लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से सम्मानित किया गया। 1999 में डॉ मनमोहन सिंह को राष्ट्रीय कृषि विज्ञान संस्था, नई दिल्ली, द्वारा सदस्यता दी गई। 2002 में उन्हें अन्ना साहेब चिरमुले ट्रस्ट की ओर से अन्ना साहेब चिरमुले पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दो वर्ष बाद भारतीय संसदीय दल की तरफ से उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार दिया गया। 2010 में उन्हें अपील ऑफ़ कान्शन्स फौन्डेशन की ओर से वर्ल्ड स्टैट्स्मन पुरस्कार प्रदान किया गया।

Tuesday, 23 May 2017

Inder Kumar Gujral


पूरा नाम - इन्द्र कुमार गुजराल
जन्म - 4 दिसंबर, 1919
जन्म भूमि - पंजाब के प्रांत झेलम
पिता - अवतार नारायण गुजराल 
माता - पुष्पा गुजराल 

जन्म

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व विदेश मंत्री इंद्रकुमार गुजराल का जन्म 4 दिसंबर को 1919 को झेलम में हुआ, जो अब पाकिस्तान में है। उनके पिता का नाम अवतार नारायण गुजराल और माता का नाम पुष्पा गुजराल था।उनके माता-पिता दोनों देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे। 11 वर्ष की आयु में इंद्रकुमार गुजराल अपने भाई प्रसिद्ध चित्रकार सतीश और बहन उमा के साथ देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। 1942 में वे भारत छोड़ो आंदोलन में जेल भी गए।

शिक्षा

इन्द्र कुमार गुजराल की शिक्षा दीक्षा डी०ए०वी० कालेज, हैली कॉलेज ऑफ कामर्स और फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज लाहौर में हुई। उन्होंने बी.ए, एम.ए, पी.एच.डी और डी. लिट् की उपाधियां प्राप्त कीं। हिन्दी, उर्दू और पंजाबी भाषा में निपुण होने के अलावा वे कई अन्य भाषाओं के जानकार भी थे और शेरो-शायरी में काफी दिलचस्पी रखते थे।

राजनैतिक जीवन
इंद्रकुमार गुजराल के राजनीतिक जीवन की शुरुआत कॉलेज के दिनों में ही हो चुकी थी। वे लाहौर में स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद इंद्रकुमार गुजराल ने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ले ली। कुछ समय तक गुजराल ने बीबीसी हिन्दी पर पत्रकार के रूप में भी काम किया। मात्र बारह वर्ष की आयु में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना शुरू कर दिया था। भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका के चलते 23 वर्ष की आयु में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। स्वतंत्रता के पश्चात केन्द्रीय राज्यमंत्री के रूप में कार्य करते हुए इन्होंने संचार एवं संसदीय कार्य मंत्रालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, सड़क एवं भवन मंत्रालय तथा योजना एवं विदेश मंत्रालय के कार्य भी संभाले। यह कॉग्रेस पार्टी से लंबे समय तक जुड़े रहे तथा राजनायिक के रूप में इन्दिरा गांधी को भी अपनी सेवाएं प्रदान की। लेकिन जल्द ही इनका कॉग्रेस से मोह भंग हो गया और इन्होंने जनता दल की सदस्यता ले ली। और जल्द ही देवगौड़ा के इस्तीफे के बाद गुजराल को प्रधानमंत्री पद प्राप्त हो गया। प्रशासनिक कार्यों के अलावा इन्द्र कुमार गुजराल के पास शासन का भी अनुभव था जो उनके बहुत काम आया।

मृत्यु 

वे लम्बे समय से डायलिसिस पर चल रहे थे। 19 नवम्बर 2012 को छाती में संक्रमण के बाद उन्हें हरियाणा स्थित गुड़गाँव के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहाँ इलाज के दौरान ही उनकी हालत गिरती चली गयी। 27 नवम्बर 2012 को वे अचेतावस्था में चले गये। काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। आखिरकार 30 नवम्बर 2012 को उनकी आत्मा ने उनका शरीर छोड़ दिया।

Sunday, 21 May 2017

H.D. Dev Gowda


पूरा नाम - हरदनहल्ली डोडे गौड़ा देव गौड़ा
जन्म -18 मई 1933
जन्म भूमि -  हरदनहल्ली गांव, हासन, कनार्टक
पिता - डोडे गोवड़ा
माता - देवअम्मा

जन्म

एच.डी. देवगौड़ा' का जन्म 18 मई, 1933 को कर्नाटक के हरदन हल्ली ग्राम में हुआ था। उनका पूरा नाम हरदन हल्ली डोडेगौड़ा देवगौड़ा है। उनके पिता का नाम श्री दोड्डे गौड़ा तथा माता का नाम देवम्या था।

शिक्षा

 श्रीमती एल.व्ही. पॉलिटेक्निक कॉलेज, हसन, कर्नाटक से उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया था।

परिवारिक जीवन

 उन्होंने चिनम्मा से विवाह किया और उनके चार पुत्र हैं – एच.डी. बालकृष्ण गौड़ा, एच.डी. रेवन्ना, डा. एच.डी. रमेश और एच.डी. कुमार स्वामी हैं। उनकी दो पुत्रियां भी हैं जिनका नाम एच.डी. अनुसुइया और एच.डी. शैलजा है। उनके एक पुत्र एच.डी. कुमारस्वामी कनार्टक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

राजनैतिक जीवन

गौड़ा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छोटी उम्र में की। वे पढ़ाई पूरी करने के बाद 20 वर्ष की आयु में  राजनीति में आ गए। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर सन 1962 तक पार्टी के कार्यकर्ता रहे। इसके बाद उन्होंने कनार्टक विधानसभा के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। वे राज्य विधानसभा में 1972-1976 तक और 1976-1977 तक विपक्ष के नेता रहे। सन 1975 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाये गए आपातकाल के दौरान वे 18 महीने जेल में रहे। इस दौरान उन्होंने कई किताबें पढ़कर और उस दौर में जेल में बंद नेताओं से बात करके अपना राजनीतिक ज्ञान बढ़ाया। इस ज्ञान से उनका राजनैतिक व्यक्तित्व और विचार दोनों ही निखरे। 22 नवंबर 1982 को गौड़ा ने छठवीं विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद वह सातवीं और आठवीं विधानसभा में लोकनिर्माण व सिंचाई मंत्री बने। सिंचाई मंत्री के कार्यकाल के दौरान उन्होंने सिंचाई की कई नई योजनाएं शुरू कीं। 1987 में उन्होंने मंत्रीमंडल छोड़ दिया और सिंचाई के लिए अपर्याप्त धन दिए जाने का विरोध किया। 1989 में उन्हें हार का स्वाद चखना पडा। इसके बाद 1991 में वह हासन संसदीय क्षेत्र से संसद के लिए निर्वाचित हुए। उन्होंने कर्नाटक के लोगों खासतौर पर किसानों की समस्याएं उठाने में अहम भूमिका निभाई। आम जनता के साथ-साथ उन्हें संसद में भी सभी से बहुत सम्मान मिला। वह दो बार जनता दल के नेता बने। इसके बाद वह जनता दल पार्टी की ओर से विधायक दल के नेता चुने गए और 11 दिसंबर 1994 को कनार्टक के 14वें मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार संभाला। 1996 में कांग्रेस पार्टी को लोक सभा चुनाव में हार मिली और प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव को पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद एच.डी. देवगोवड़ा देश के 11वें प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। वह 1 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।
सामान्य मध्यम वर्गीय कृषक परिवार से संबंध एच.डी. देवगौड़ा के व्यक्तित्व पर साफ दिखाई देता है। वह अपने सिद्धांतों और कर्तव्यों के प्रति सचेत रहते थे और किसानों की परेशानियों और उनके परिश्रम का मोल भली-भांति समझते थे।

Sunday, 14 May 2017

Atal Bihari Vajpayee


पूरा नाम - अटल बिहारी वाजपेयी
जन्म -25 दिसम्बर 1924
जन्म भूमि - ग्वालियर
पिता - कृष्णा बिहारी वाजपेयी
माता - कृष्णा देवी

जन्म

अटल बिहारी वाजपेयी' का जन्म 25 दिसंबर 1924 ई० को भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित ग्वालियर के शिंदे की छावनी में हुआ था। इनके पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में ही अध्यापन कार्य करते थे। अटलजी के दादा पं० श्याम लाल बिहारी वाजपेयी जाने-माने संस्कृत के विद्वान थे।

शिक्षा

वाजपेयी ने ग्वालियर के बारा गोरखी के गोरखी ग्राम की गवर्नमेंट हायरसेकण्ड्री स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी। बाद में वे शिक्षा प्राप्त करने ग्वालियर विक्टोरिया कॉलेज (अभी लक्ष्मी बाई कॉलेज) गये और हिंदी, इंग्लिश और संस्कृत में डिस्टिंक्शन से पास हुए। उन्होंने कानपूर के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से पोलिटिकल साइंस में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन एम.ए में पूरा किया। इसके लिये उन्हें फर्स्ट क्लास डिग्री से भी सम्मानित किया गया था।

राजनैतिक जीवन


ग्वालियर के आर्य कुमार सभा से उन्होंने राजनैतिक काम करना शुरू किये, वे उस समय आर्य समाज की युवा शक्ति माने जाते थे। और 1944 में वे उसके जनरल सेक्रेटरी भी बने। 1939 में एक स्वयंसेवक की तरह वे राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गये। और वहा बाबासाहेब आप्टे से प्रभावित होकर, उन्होंने 1940-44 के दर्मियान आरएसएस प्रशिक्षण कैंप में प्रशिक्षण लिया और 1947 में आरएसएस के फुल टाइम वर्कर बन गये। अटल बिहारी वाजपेयी भारत के 10 वे पूर्व प्रधानमंत्री है। वे पहले 1996 में 13 दिन तक और फिर 1998 से 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री बने रहे। वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता है, भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के बाहर के इंसान होते हुए भारत की पांच साल तक सेवा करने वाले वे पहले प्रधानमंत्री हैं। इसके अलावा लोकसभा चुनावो में वाजपेयी जी ने नौ बार जीत हासिल की है। जब उन्होंने स्वास्थ समस्या के चलते राजनीती से सन्यास ले लिया था तब उन्होंने 2009 तक लखनऊ, उत्तर प्रदेश के संसद भवन की सदस्य बनकर भी सेवा की है। वाजपेयी भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य भी है। मोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री भी रहे और विदेशों में भारत की छवि को निखारा है। भारत की संस्कृति, सभ्यता, राजधर्म, राजनीति और विदेश नीति की इनको  गहरी समझ है। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में जहां इन्होंने पाकिस्तान और चीन से संबंध सुधारने हेतु अभूतपूर्व कदम उठाए वहीं अंतर राष्ट्रीय दवाबों के बावजूद गहरी कूटनीति तथा दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए  पोकरण में परमाणु विस्फोट किए तथा कारगिल-युद्ध जीता। राजनीति में दिग्गज राजनेता, विदेश नीति में संसार भर में समादृत कूटनीतिज्ञ, लोकप्रिय जननायक और कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ ये  एक अत्यंत सक्षम और संवेदनशील कवि और लेखक भी रहे हैं। विभिन्न संसदीय प्रतिनिधिमंडलों के सदस्य और विदेश मंत्री तथा प्रधानमंत्री के रूप में इन्होंने  विश्व के अनेक देशों की यात्राएं की हैं और भारतीय कुटनीति तथा विश्वबंधुत्व का घ्वज लहराया है।

प्रमुख रचनायें
 
मृत्यु या हत्या,
सेक्युलर वाद,
अमर आग है,
कैदी कविराय की कुण्डलियाँ,
संसद में तीन दशक,
बिन्दु बिन्दु विचार,
अमर बलिदान,
राजनीति की रपटीली राहें,
कुछ लेख: कुछ भाषण, इत्यादि।

पुरस्कार

पद्म विभूषण(1992)
लोकमान्य तिलक पुरस्कार(1994)
श्रेष्ठ सासंद पुरस्कार(1994)
भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार(1994)
डी लिट (मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय)(2015)
'फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड', (बांग्लादेश सरकार द्वारा प्रदत्त)(2015)
भारतरत्न से सम्मानित(2015)




Saturday, 13 May 2017

P.V. Narsimha Rao


पूरा नाम - पामुलापति वेंकट नरसिंह राव
जन्म - 28 जून, 1921
जन्म भूमि - वन्गारा, आंध्र प्रदेश
मृत्यु - 23 दिसम्बर, 2004
पिता - पी. रंगा राव
माता - रुक्मिनिअम्मा

जन्म

पी.वी. नरसिंह राव' का पूरा नाम नाम पामुलापति वेंकट नरसिंह राव है। उनका जन्म 28 जून, 1921 में करीमनगर, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उनके पिता पी. रंगा राव और माता रुक्मिनिअम्मा कृषक थे।

शिक्षा

प्राथमिक शिक्षा उन्होंने करीमनगर जिले के भीमदेवारापल्ली मंडल के कटकुरु गाँव में पूरी की थी, वहाँ वे अपने रिश्तेदार गब्बेता राधाकिशन राव के घर में रहते थे और ओस्मानिया यूनिवर्सिटी के आर्ट्स कॉलेज में बैचलर डिग्री हासिल करने के लिए पढते थे। बाद में वे हिस्लोप कॉलेज पढने के लिए गये, जो अब नागपुर यूनिवर्सिटी के अधीन आता है। वहाँ रहते हुए उन्होंने लॉ में मास्टर डिग्री पूरी की थी। राव की मातृभाषा तेलगु थी और मराठी भाषा पर भी उनकी अच्छी-खासी पकड़ थी। इसके साथ-साथ दूसरी आठ भाषाओ (हिंदी, ओरिया, बंगाली, गुजरती, कन्नड़, संस्कृत, तमिल और उर्दू भाषा) के साथ-साथ वे इंग्लिश, फ्रेंच, अरबिक, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन भाषा भी बोल लेते थे।

राजनैतिक जीवन

नरसिंह राव भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान एक सक्रीय कार्यकर्ता थे और आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। राजनीति में आने के बाद राव ने पहले आन्ध्र प्रदेश और फिर बाद में केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला। आंध्र प्रदेश सरकार में सन 1962 से 64 तक वे कानून एवं सूचना मंत्री, सन 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, सन 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री और सन 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे। नरसिंह राव सन 1971 से 1973 तक आंध्र प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे। वे सन 1957 से लेकर सन 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा और सन 1977 से 1984 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक सीट से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए। राजनीति में उनके विविध अनुभव के कारण ही उन्हें केंद्र सरकार में गृह, रक्षा और विदेश मंत्रालय जैसे मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी गयी। नरसिंह राव 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री एवं 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में भी केंद्र सरकार में कार्य किया। नरसिंह राव ने सक्रीय राजनीति से लगभग संन्यास सा ले लिया था पर राजीव गाँधी की हत्या के बाद उनकी किस्मत पलटी और वे एकाएक भारतीय राजनीति के केंद्रबिंदु बन गए। सन 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सबसे अधिक सीटों पर विजय हासिल की पर उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका था। इसके बाद नरसिंह राव को अल्पमत सरकार चलने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। इस प्रकार राव नेहरु-गाँधी परिवार के बाहर पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने पूरे पांच साल प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे पहले दक्षिण-भारतीय प्रधानमंत्री भी थे।

मृत्यु

9 दिसम्बर 2004 को राव को हार्ट अटैक आया था और इसके तुरंत बाद उन्हें ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस में भर्ती किया गया और भर्ती करने के 14 दिनों बाद 83 साल की आयु 23 दिसम्बर को उन्होंने अंतिम सांसे लीं।